जयपुर

तब गाय की मृत्यु होने पर मोहल्ले में छा जाता था शोक, घरों में चूल्हा तक नहीं जलता था

जयपुर में इन दिनों लम्पी संक्रमण से गोवंश की मौत का मंजर देखने को मिल रहा है। वहीं, एक वो भी जमाना था तब किसी के घर में गाय के मरने पर सारा मोहल्ला शोक में डूब जाता था।

जयपुरSep 19, 2022 / 06:30 pm

Kamlesh Sharma

Rajasthan Lumpy Skin Disease

जितेन्द्र सिंह शेखावत
जयपुर में इन दिनों लम्पी संक्रमण से गोवंश की मौत का मंजर देखने को मिल रहा है। वहीं, एक वो भी जमाना था तब किसी के घर में गाय के मरने पर सारा मोहल्ला शोक में डूब जाता था। मृत गाय या सांड के नहीं उठने तक मोहल्ले के घरों में चूल्हा तक भी नहीं जलता। गाय के उठने तक घर के लोग कीर्तन करते थे। गंगा जल मिश्रित जल से स्नान के बाद मंदिर में तुलसी चरणामृत का आचमन कर भोजन करते थे। बनीपार्क, मीरा मार्ग में पीपलेश्वर महादेव के पं. केदार नाथ दाधीच ने बताया कि गाय और सांड के मरने पर मोहल्ले में शोक छा जाता था।

उन दिनों मंदिरों में गोपालन होता था। मन्दिर की गायों के दूध का ही भगवान को भोग लगता था। आज किसी भी मंदिर में गाय नहीं दिखती। मंदिर की गो माता का दर्शन करने के बाद लोग भगवान के सामने जाते थे। अब मंदिरो में गो दर्शन बिना ही दर्शन करने लगे हैं। ब्रह्मपुरी और पुरानी बस्ती में तो सुबह मंगला झांकी में जाने वाले धर्म परायण लोग रास्ते चलते ही गोमूत्र को अंजुली में भरकर आचमन कर धन्य हो जाते थे।

यह भी पढ़ें

विलायत से दो हिंसक चीते रेल से लाए गए थे जयपुर, पढ़ें पूरी खबर

सवाई माधो सिंह द्वितीय तो सुबह आंख खोलने पर महल में खड़ी बछड़ी का दर्शन करने के बाद गोविन्द देव जी को नमन करते थे। उनके उठने से पहले बछड़ी को महल में छोड़ दिया जाता। महाराजा गायों के लिए चांदी के 61 रुपयों का दान करते थे। घरों और मंदिरों की गायों को ग्वाले जंगल में चराने ले जाते और शाम को गोधूलि बेला में वापस लाते। गोपाष्टमी तथा बछ बारस के दिन गाय-बछड़ों की पूजा का माहौल धार्मिक उत्सव के जैसा होता था।

सिया शरण लश्करी के मुताबिक सन 1960 में मुंबई के पंडित दीनदयाल शर्मा की मोहनबाड़ी में गो कथा के बाद बड़ी गोशाला खोलने के लिए गो भक्तों ने मोती डूंगरी रोड पर उस्ताद राम नारायण का नोहरा किराए पर लिया। सेठ खेमराज कृष्णदास व नथमल के प्रयास से अंगहीन गायों व बछड़ों का दर्शन करने के लिए जड़ियों का रास्ता में नोहरा खरीदा गया था। रियासत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित शिवदीन के पुत्र रामाशंकर ने 1921 में किशनपोल की पांच दुकानें गोशाला को भेंट की।

यह भी पढ़ें

प्रदेश में तड़प-तड़प कर मर रहा गोवंश , 57 हजार से अधिक गोवंश की मौत

सन1938 में ज्वाला प्रसाद कचोलिया आदि के आग्रह पर सवाई मानसिंह ने सांगानेर के पास गोशाला के लिए भूमि दी। सन् 1964 में जौहरियों ने माल खरीद पर कुछ रकम गोशाला को देना शुरू किया। सेठ रामप्रताप सोमानी के प्रयास से दुकानों पर गो सेवा दान पात्र रखे गए। अग्रवाल, माहेश्वरी व स्वर्णकारों ने विवाह में 2 रुपए व मृत्यु भोज पर एक रुपया गो शाला को देने का फैसला किया। सन् 1915 में धर्म कांटे पर तुलने वाले जेवर पर गायों के लिए दो पैसे की लाग लगाई गई।

कन्हैया लाल घाटी वाला ने गो सेवा ट्रस्ट बनाया। गो पालन के मामले में देश की दस बड़ी रियासतों में जयपुर का पहला स्थान रहा। सांड के मरने पर सम्मान के साथ शव यात्रा निकाली जाती थी । जयपुर नगर के अलावा सभी गांवों में गायों के लिए गोचर की जमीन होती है। जयपुर विकास प्राधिकरण, आवासन मंडल आदि ने गांव की जमीन के साथ गोचर पर भी कॉलोनियां बसा दी है।

Hindi News / Jaipur / तब गाय की मृत्यु होने पर मोहल्ले में छा जाता था शोक, घरों में चूल्हा तक नहीं जलता था

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.