प्रदेश के किसी भी क्षेत्र में एक साथ डवलपमेंट के लिए रीजनल प्लानिंग की जा सकेगी। इसमें शहरी के साथ ग्रामीण इलाका भी शामिल किया जा सकेगा। इसी तरह एक, दो या दो से अधिक जिलों में शामिल क्षेत्र की प्लानिंग भी कर पाएंगे। जबकि, अभी तक हर निकाय का अपना मास्टर प्लान है और सभी उसी आधार पर अलग-अलग डवलपमेंट प्लान बनाते आ रहे हैं। इससे एक एरिया में तो अच्छा विकास हो रहा है, लेकिन कुछ में बेतरतीब स्थिति है। अभी प्रदेश में रीजनल प्लानिंग को लेकर कोई भी कानून लागू नहीं है।
कानून का रूप लेने के बाद टाउनशिप नीति, मुख्यमंत्री जन आवास योजना, बिल्डिंग बायलॉज, डेवलपमेंट एंड कंट्रोल रेगुलेशंस और अन्य नीति व उप नियम, इस एक ही कानून के तहत प्रदेश में लागू किए जा सकेंगे। पिछली भाजपा सरकार में भी टाउन एंड कंट्री प्लानिंग बिल का प्रारूप तैयार किया गया था, लेकिन लागू नहीं हो सका। तय किया जा रहा है कि प्रारूप को जरूरत के अनुसार अपडेट किया जा सकता है या नहीं।
जयपुर विकास प्राधिकरण के परिधि क्षेत्र में 700 से ज्यादा गांव हैं, लेकिन वहां डवलपमेंट प्लान प्रभावी करने से पहले पंचायत की अनुमति लेनी होती है। कई जगह पंचायत रोड़े लगा देती है, क्योंकि उनका भी अलग से मास्टर प्लान है। ऐसे में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र का एक साथ नियोजित डवलपमेंट नहीं हो पाता।
पूर्व मुख्य नगर नियोजक एच.एस. संचेती ने बताया कि गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडू सहित अन्य राज्य कई वर्षों से रीजनल प्लानिंग कर रहे है। इससे वहां टुकडों की बजाय बड़े एरिया में एक साथ डवलपमेंट हुआ है। इस मामले में राज्य पीछे है जबकि प्रारूप पर चर्चा हो चुकी थी। जिस तरह एनसीआर का अलग से प्लान है, उसी तरह प्रदेश में एक कानून बनने से नियोजित तरीके से विकास होगा।