गांधी टोपी में नजर आने वाले पहाडिय़ा 70 साल से राजनीति में हैं, पर आज की राजनीति से दूर हैं, उनके आसपास सादगी नजर आती है। पत्रिका ने उनसे सम्पर्क किया, तो वे बोले मेरा साक्षात्कार लेकर क्या करोगे, किसी बड़े व्यक्ति का साक्षात्कार लो। पहाडिय़ा को विधायक दल ने सीएम के लिए नेता चुना, लेकिन पार्टी का निर्देश मिलते ही पद छोड़ दिया। वे अब भी स्वयं को चर्चित चेहरा नहीं मानते।
उन्होंने कहा, रियासतकाल के समय राजस्थान में कांग्रेस नहीं थी। उस समय प्रजा परिषद व प्रजा मंडल हुआ करते थे। 1946—47 में वे भरतपुर प्रजा परिषद के सदस्य रहे। बाद में कांग्रेस आई। 1952 में सेवादल में थे, इसी कारण पार्टी के कार्यक्रम में बुलाया गया। उन्होंने कहा, ‘जब मैं सांसद था तो भरतपुर के तत्कालीन महाराजा भी सांसद रहे, उनको जब मेरे सांसद बनने का पता चला तो वे मुझे साथ लेकर गए थे।
संसद में ग्वालियर की तत्कालीन महारानी विजयाराजे सिंधिया की सीट मेरी बगल में रही। आने—जाने में परेशानी के कारण वे मेरी सीट पर बैठती थीं और मुझसे बार—बार माफी मांगती थी और कहती थीं, उनकी वजह से मुझे परेशानी होती है। मैं कहता था इसमें परेशानी की क्या बात है।’
‘मैंने शराब को खोला नहीं, बल्कि रोका था’
भाजपा के अध्यक्ष रहे अशोक परनामी से किसी ने कहलवा दिया कि ‘मैंने शराबबंदी खुलवाई थी, जब मुझे यह पता लगा तो परनामी से कहा, सही तो कह दो, मैंने तो शराब पर रोक लगाई थी। तीन साल हो गए अब तक तो परनामी ने अपनी गलत बात को सही किया नहीं है। खैर, जब शराब पर रोक लगाई थी, उस समय शराब पीने से लोग मरते थे, इसलिए इसे रुकवाया था।
भाजपा के अध्यक्ष रहे अशोक परनामी से किसी ने कहलवा दिया कि ‘मैंने शराबबंदी खुलवाई थी, जब मुझे यह पता लगा तो परनामी से कहा, सही तो कह दो, मैंने तो शराब पर रोक लगाई थी। तीन साल हो गए अब तक तो परनामी ने अपनी गलत बात को सही किया नहीं है। खैर, जब शराब पर रोक लगाई थी, उस समय शराब पीने से लोग मरते थे, इसलिए इसे रुकवाया था।
आज ‘अंबानी-अंबानी’
पहाडिय़ा बोले, आज अंबानी—अंबानी होता है। वे एक बार तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के पास गए,वहां अंबानी आए हुए थे। वे तो अंबानी को जानते तक नहीं हैं। एक बार उनके घर आडवाणी आए, खाना खा रहे थे तब उनसे परिचय हुआ।
पहाडिय़ा बोले, आज अंबानी—अंबानी होता है। वे एक बार तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के पास गए,वहां अंबानी आए हुए थे। वे तो अंबानी को जानते तक नहीं हैं। एक बार उनके घर आडवाणी आए, खाना खा रहे थे तब उनसे परिचय हुआ।
‘मैं नहीं जानता, राजनीति क्या होती है’
आज टिकट लेने के समय से ही नेता जाति का हवाला देने लगते हैं, ऐसे हालात में भी पहाडिय़ा कहते हैं, ‘मेरी तो जाति वालों की संख्या अधिक नहीं थी और न मेरी अपनी कोई विचाराधारा नहीं। आर्य समाज से जुड़ाव रहा।’ वे यह भी बोले कि ‘मैं नहीं जानता राजनीति क्या होती है। पर काम किया, जब हिण्डौन से विधायक रहा तो वहां लोगों को परेशान देखकर नाले को पक्का करवाया। मुख्यमंत्री रहा तो शराब बंद करवाई।Ó
आज टिकट लेने के समय से ही नेता जाति का हवाला देने लगते हैं, ऐसे हालात में भी पहाडिय़ा कहते हैं, ‘मेरी तो जाति वालों की संख्या अधिक नहीं थी और न मेरी अपनी कोई विचाराधारा नहीं। आर्य समाज से जुड़ाव रहा।’ वे यह भी बोले कि ‘मैं नहीं जानता राजनीति क्या होती है। पर काम किया, जब हिण्डौन से विधायक रहा तो वहां लोगों को परेशान देखकर नाले को पक्का करवाया। मुख्यमंत्री रहा तो शराब बंद करवाई।Ó
सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में
शराब पर रोक लगवाई, शिक्षा का प्रसार किया, कृषि, उद्योग, पंचायती राज के विकास के लिए कार्य किया। पर्दाप्रथा व देह कारोबार रोकने के लिए कार्य किया। दलित, आदिवासी व पिछड़े वर्गों के विकास के लिए कार्य किया।
शराब पर रोक लगवाई, शिक्षा का प्रसार किया, कृषि, उद्योग, पंचायती राज के विकास के लिए कार्य किया। पर्दाप्रथा व देह कारोबार रोकने के लिए कार्य किया। दलित, आदिवासी व पिछड़े वर्गों के विकास के लिए कार्य किया।
पहाडिय़ा का राजनीतिक सफर राजस्थान के सीएम रहे
6 जून 1980 से 14 जुलाई 1981 तक राज्यपाल
बिहार: 3 मार्च 89 से 2 फरवरी 90
हरियाणा : 27 जुलाई 09 से 26 जुलाई 14
6 जून 1980 से 14 जुलाई 1981 तक राज्यपाल
बिहार: 3 मार्च 89 से 2 फरवरी 90
हरियाणा : 27 जुलाई 09 से 26 जुलाई 14
केन्द्रीय मंत्री
वित्त उप मंत्री: 1967—69
खाद्य, कृषि, श्रम व उद्योग उप मंत्री : 1970—71
वित्त राज्य मंत्री: 1980
लोकसभा सदस्य रहे
1957,1967,1971 व 1980 में
विधायक रहे
1980,1985,1990 व 2003
वित्त उप मंत्री: 1967—69
खाद्य, कृषि, श्रम व उद्योग उप मंत्री : 1970—71
वित्त राज्य मंत्री: 1980
लोकसभा सदस्य रहे
1957,1967,1971 व 1980 में
विधायक रहे
1980,1985,1990 व 2003