बगरू राजधानी से महज 30 किलोमीटर दूर होते हुए भी विकास के नाम पर अब भी पिछड़ा क्षेत्र है। यहां जनता आज भी फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर है। बगरू के परकोटे इलाके में तो इस साल कुछ जगह बीसलपुर का पानी पहुंचा है लेकिन अधिकतर लोग पेयजल समस्या से जूझ रहे हैं।
शहरी क्षेत्र में सड़कों व पेयजल की समस्या बरकरार है। यहां दो बार कांग्रेस व एक बार भाजपा की जीत हो चुकी है लेकिन विकास की रफ्तार को कभी पंख नहीं लग पाए। पिछले चुनाव में यहां 15 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे इस बार 12 प्रत्याशी भाग्य आजमा रहे हैं। इस बार भी भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है
सेहत, बिजली-पानी ही मुद्दे
बगरू निवासी रामदत्त, मोहन गुर्जर, मंगलराम, रमेश मेहता, गोपाल चलावरिया, अविनाश बागड़ा, लालचंद पण्डा, शुभम खंडेलवाल, राजेश बडेरा, श्योचन्द व दिनेश यादव ने बताया कि बगरू विधानसभा क्षेत्र का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। इस साल बीसलपुर का पानी तो आया लेकिन सिर्फ बगरू के आधे परकोटे में ही पहुंच पाया। आधे बगरू सहित आसपास की सभी पंचायतों में अब भी लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। वहीं सीएचसी को कस्बे से करीब चार किलोमीटर दूर शिफ्ट किए जाने से लोग परेशान हैं।
जिस पार्टी की जीत, सरकार उसी की
जयपुर की बगरू विधानसभा सीट एससी आरक्षित सीट है। यहां इस बार भी जातिगत समीकरण हावी हैं। परिसीमन के बाद 2008 में सांगानेर से अलग होकर बगरू विधानसभा क्षेत्र बना था। वर्ष 2008 में यह सीट कांग्रेस की झोली में गई थी। इसके बाद 2013 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। फिर इस सीट पर 2018 में दूसरी बार कांग्रेस काबिज हुई। संयोग है कि यहां जिस पार्टी का विधायक चुनकर जाता है उसी की राजस्थान में सरकार बनती है। इस विधानसभा क्षेत्र में बगरू नगर पालिका के 35 वार्ड, जयपुर शहर के 21 वार्ड तथा सांगानेर पंचायत समिति की 30 ग्राम पंचायतें आती हैं। जातिगत समीकरणों के बीच हार-जीत में शहर के मतदाता निर्णायक की भूमिका निभाएंगे। शहर में अधिक मतदाता हैं। हमेशा की तरह जीत का समीकरण शहर के वार्डों से तय होगा।
ये हैं आमजन की पीड़ा
-जिला अस्पताल नहीं
-उपखंड अधिकारी कार्यालय नहीं
-स्वतंत्र तहसील नहीं
-बस स्टैंड का अभाव
-सीवरेज लाइन का इतंजार
-सार्वजनिक पार्क व स्टेडियम का अभाव
-सड़कों का जाल भी बदहाल