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जयपुर

राजस्थान चुनाव 2018: अपने नमक का हक मांग रहा है सांभर

Rajasthan Election 2018: फुलेरा विधानसभा में आता है सांभर, रोजगार को तरस रही क्षेत्र की जनता…

जयपुरNov 29, 2018 / 11:29 am

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-अभिषेक सिंघल

सांभर। कहते हैं नमक का कर्ज ऐसा कर्ज है जो चुकाए नहीं चुकता। एक बार जो किसी का नमक खा ले तो वह उम्रभर उसका कर्जदार हो जाता है। उत्तर भारत ने सदियों तक सांभर स्थित झील का नमक खाया है, पर अब हालात ऐसे हो गए हैं कि सांभर अपने नमक का हक मांग रहा है पर कोई सुनने वाला नहीं है।
देश की सबसे बड़ी खारे पानी की यह झील जयपुर, अजमेर और नागौर तीन जिलों के बीच स्थित है। कहने को यह क्षेत्र पर्यटन केन्द्र बन रहा है, पर जनता रोजगार को तरस रही है। शाकंभरी देवी के नाम पर पहचानी जाने वाली झील तेजी से सिमट रही है जिससे इस पर खतरा मंडरा रहा है।
झील किनारे स्थित मुख्य कस्बा सांभर, फुलेरा विधानसभा क्षेत्र में आता है। 90 वर्ग मील में फैली झील का 30 फीसदी हिस्सा इस विधानसभा क्षेत्र में है। ऐसे में लोगों की उम्मीद हंै कि झील का संरक्षण इस चुनाव में बड़ा मुद्दा हो। आम जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सांभर का नमक ही लोगों की जुबान पर है।
यहां निजी क्षेत्र में नमक उत्पादन प्रतिबंधित होने से सीमित रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। रोज हजारों लोग यहां से जयपुर और अजमेर में रोजगार के लिए आते हैं। दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है पानी। खारे पानी की झील किनारे बसे होने से जमीन का पानी इतना खारा और फ्लोराइड युक्त है कि उसे पीना आसान नहीं है। ऐसे में चुनावी दौड़ में प्रत्याशी पीने का पानी दिलाने के वादे पर वोट मांग रहे हैं।
यहां जनता का दर्द है कि नागौर और अजमेर जिले में स्थानीय लोग झील के किनारे नमक उत्पादन में जुटे हैं, पर जयपुर जिले में इसकी अनुमति न होने से वे रोजगार नहीं जुटा पा रहे हैं। इसके लिए क्षेत्र में लंबा आंदोलन चला।
जब सरकारों ने ध्यान नहीं दिया तो जनता रोजगार की तलाश में पलायन को मजबूर हो गई। सांभर के ही नमक व्यापारी नागौर जिले के राजास में बड़े पैमाने पर व्यवसाय कर रहे हैं। नागौर का नावां नमक की बड़ी मंडी के रूप में विकसित हो गया है।
सांभर निवासी और राजास में नमक कारोबारी अनिल गट्टानी बताते हैं कि सरकार पहले सांभर में निजी क्षेत्र को नमक उत्पादन की अनुमति दे देती तो नावां-राजास से ज्यादा सांभर विकसित हो सकता था। मंडी में हर साल 50 हजार लोग रोजगार पा रहे हैं जबकि सांभर के लोग बाहर जा रहे हैं। अगर सरकार जयपुर जिले में नमक उत्पादन की निजी अनुमति दे तो बड़ी संख्या में रोजगार मिल सकेगा।
लोगों की मांग – कब घोषित करेंगे जिला
– सांभर साल्ट्स कर्मचारी यूनियन के महासचिव अशोक पारीक ने कहा, तीस साल पहले हजार से ज्यादा वर्कर थे। प्रबंधन ने घटाए कर्मचारी।
– पूर्व पार्षद नाथूलाल ने कहा, सांभर को जिला घोषित करवाना प्राथमिकता है। पीने का पानी बड़ा मुद्दा।
– रामेश्वरी देवी कहती हैं नमक जमाने की इजाजत मिलनी चाहिए जिससे रोजगार मिलें। चिकित्सा में सुधार हो।
– अशोक यादव कहते हैं कि आश्रम एक्सप्रेस का स्टॉपेज एक मुख्य मुद्दा है।
निजी उत्पादकों से झील को खतरा
सांभर में विरोधाभास भी दिखा। एक ओर नमक के निजी उत्पादन के अभाव में रोजगार की कमी है तो दूसरी ओर अजमेर-नागौर के निजी उत्पादकों के कारण झील पोली हो रही है। सांभर सॉल्ट के मार्केटिंग मैनेजर संपन्न गौड़ कहते हैं कि निजी उत्पादक बोरिंग से झील के नीचे से लवणीय जल खींचकर नमक बना रहे हैं, जिससे झील को खतरा है।
और औरंगजेब करता था 15 लाख की कमाई
सांभर झील मुगलकाल से ही आय का प्रमुख साधन रही। अकबर झील से सालाना ढाई लाख तो औरंगजेब 15 लाख रु. कमाता था। जनश्रुति है कि इसका संबंध महाभारत काल से भी है। देवयानी और ययाती का विवाह यहीं हुआ था। झील किनारे आज भी देवयानी सरोवर और मंदिर स्थित हैं। वहीं शाकंभरी देवी का मंदिर चौहान वंश की कुल देवी का है।
जब जोधपुर, जयपुर रियासत में रहा विवाद
जोधपुर और जयपुर रियासत के बीच इस झील को लेकर विवाद रहा। 1835 में ब्रिटिश ने एक संधि के जरिए झील का कारोबार अपने जिम्मे ले लिया। इसके बाद यह अलग अलग अवधियों में जयपुर जोधपुर और ब्रिटिश के साझा कारोबार में रही। 1870 में ब्रिटिश इंतजाम ने लीज पर लेते हुए पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया और आजादी के बाद से यह केन्द्र सरकार के नियंत्रण में रही।

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