scriptवोट के लिए राजस्थान की इस महारानी को छोडऩा पड़ा था महलों का आराम, इनकी जीत की आंधी में उड़ गया था हर कोई | Rajasthan Election 2018: Maharani Gayatri Devi Political Journey | Patrika News
जयपुर

वोट के लिए राजस्थान की इस महारानी को छोडऩा पड़ा था महलों का आराम, इनकी जीत की आंधी में उड़ गया था हर कोई

www.patrika.com/rajasthan-news/

जयपुरNov 10, 2018 / 06:17 pm

dinesh

Gayatri Devi
1962 जयपुर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य गायत्री देवी ने जब 1962 में स्वतंत्र पार्टी की कमान संभाली तब चुनावी आंधी सी चल पड़ी। 36 विधायक जीत गए…

– जितेन्द्र सिंह शेखावत


जयपुर। आजादी के पहले रियासतकाल के समय तत्कालीन राजा-रानियों के दर्शन करना आम आदमी के लिए इतना आसान नहीं होता था। फिर राज-पाट जाने के बाद जब वे महलों का आराम छोडकऱ चुनावी दंगल में उतरे, तब जनता ने उन्हें भारी समर्थन दिया था।
उस जमाने में ढूंढाड़ में भी तत्कालीन राजा और बड़े जागीरदारों का जनता के बीच आना किसी अजूबे से कम नहीं था। 1952 के पहले चुनाव में राजर्षि मदन सिंह दांता ने सारी सम्पत्ति दान कर जब राम राज्य परिषद की कमान संभाली तब उन्हें जनता का व्यापक समर्थन मिला। तब संसद में परिषद के तीन सांसद पहुंचे थे। फिर 1962 में तनसिंह जैसे कद्दावर नेता सांसद बने। 1952 में परिषद ने विधानसभा के चुनावों में 59 प्रत्याशी उतारे, जिनमें से 24 विधायक बने। 1957 में भीम सिंह नवलगढ़ तथा राव राजा सरदार सिंह, उनियारा सहित अनेक को विजयश्री मिली थी।
जयपुर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य Gayatri Devi ने जब 1962 में स्वतंत्र पार्टी की कमान संभाली तब चुनाव की आंधी सी चल पड़ी और 36 विधायक जीत गए। 1967 में 49 विधायक बने तब उनकी स्वतंत्र पार्टी के चुनाव चिन्ह तारे का बोलबाला हो गया था। फिर गायत्री देवी को जयपुर की जनता ने तीन बार सांसद बनाया। साठ के दशक में वे ‘महाराणी’ के नाम से पूरे देश में विख्यात हो गई थीं। तब उनके लिए ‘चुनाव नहीं यह तो गायत्री देवी की आंधी थी’ नारा मशहूर हुआ था।
गायत्री के सौतेले पुत्र जयसिंह और पृथ्वी सिंह के अलावा रियासत से जुड़े उनियारा, महार, दूदू व दांता आदि के पूर्व जागीरदार व सामंत भी चुनाव जीत कर विधान सभा में पंहुचे थे। गायत्री देवी ने चुनावों में कांग्रेस की जमानत ही जब्त करवा दी थी। उन्होंने 1962 में कांग्रेस की शारदा को डेढ़ लाख वोट, 1967 में डॉ. राजमल कासलीवाल को 94 हजार से और 1971 में कांग्रेस जे के पीके चौधरी को 50 हजार 644 मतों से हराया।
हवा महल से दुर्गालाल बाढ़दार व आमेर से मानसिंह महार सहित 36 लोगों ने चुनाव जीता। तब स्वतंत्र पार्टी का चुनाव चिन्ह तारा था व आतिश दरवाजे के ऊपर का महल इसका मुख्यालय हुआ करता था। गायत्री देवी किसी सभा में जाती थीं तो उनकी एक झलक पाने के लिए भीड़ जमा हो जाती थी। शहर और गांवों में गीत गूंजते थे। रामगढ़ बांध से शहर को अधिक जलापूर्ति की मांग को लेकर तब यह गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ।
….कांगरेस नै छौड़ लागी थारै ताणी,
बंधो खोल दे, महाराणी जनता के ताणी।

उस दौर की चुनावी सभाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे ओम प्रकाश विद्यावाचस्पति के मुताबिक तब पूरा ढूंढाड़ गायत्री देवी के समर्थन में उतर आया था। उन्होंने अपनी जीवनी में लिखा भी है कि चौगान में हुई एक सभा में पूर्व महाराज मानसिंह को सुनने दो लाख लोग मौजूद थे। तब चुनाव एजेंट ने गायत्रीदेवी को बताया कि आपका चुनाव देश के चुनाव इतिहास का नया कीर्तिमान रचेगा। फिर जीत के बाद वह सीधे गोविंददेव मंदिर में आशीर्वाद लेने गईं। जीवनी में गायत्री देवी ने लिखा कि राज्य सभा में निर्दलीय सांसद मानसिंह व दौसा से जीते पुत्र पृथ्वी सिंह के अलावा राष्ट्रपति के साथ ब्रिगेडियर भवानी सिंह की संसद में मौजूदगी को देखकर लगा कि मेरा सारा परिवार आज पार्लियामेंट में है।

Hindi News / Jaipur / वोट के लिए राजस्थान की इस महारानी को छोडऩा पड़ा था महलों का आराम, इनकी जीत की आंधी में उड़ गया था हर कोई

ट्रेंडिंग वीडियो