सात सीटों पर मुकाबले की है ये तस्वीर
देवली-उनियाराः गत विधानसभा चुनाव में यह सीट कांग्रेस के पास थी। इस बार कांग्रेस ने नए चेहरे कस्तूर चंद मीणा को मैदान में उतारा है, वहीं भाजपा ने पूर्व विधायक राजेन्द्र गुर्जर को चुनाव में उतारा है। यहां से कांग्रेस के बागी नरेश मीणा ने भी ताल ठोक दी है। इस वजह से कांग्रेस प्रत्याशी के सामने यहां ज्यादा चुनौती खड़ी हो गई है। यह भी पढ़ें
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खींवसरः पिछले चुनाव में यह सीट आरएलपी ने जीती थी। अब यहां से भाजपा ने जिसे पहले प्रत्याशी बनाया था, उन्हीं रेवतराम डागा को फिर से मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने रतन चौधरी और आरएलपी ने कनिका बेनीवाल नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। यहां एक राजपूत नेता को भाजपा ने अपने पक्ष में कर लिया है। सबसे ज्यादा चुनौती इस सीट पर आरएलपी के लिए है। लम्बे समय से आरएलपी ही यह सीट जीतती आ रही है। झुंझुनूंः यह सीट कांग्रेस की परम्परागत सीटों में मानी जाती है। लम्बे समय से सीट कांग्रेस के ओला परिवार के पास ही रही है। इस बार भी कांग्रेस ने ओला परिवार के अमित ओला पर भरोसा जताया है। वहीं, भाजपा ने विधानसभा चुनाव में बागी हुए नेता राजेन्द्र भांबू को अपना प्रत्याशी बनाया है। यहां से पूर्व मंत्री राजेन्द्र गुढ़ा ने भी ताल ठोक रखी है। उनकी पत्नी निशा कंवर भी चुनाव मैदान में है। इसलिए यहां रोचक त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है। पूर्व मंत्री के मैदान में उतरने से भाजपा और कांग्रेस दोनों को वोट बैंक में सैंध का डर सता रहा है।
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सलूम्बरः तीन बार से यह सीट भाजपा के खाते हैं। फिर बाजी मारन के लिए भाजपा ने यहां सहानुभूति कार्ड खेलने के लिए पूर्व विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता मीणा को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने पंचायत समिति प्रधान रेशमा को नए चेहरे के रूप में मौका दिया है। पूर्व सांसद की नाराजगी से यहां कांग्रेस को भितरघात का भी डर है। वहीं, बीएपी प्रत्याशी जितेश कुमार कटारा के मैदान में उतरने से भी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। चौरासीः यह सीट बीएपी के खाते में थी। अब बीएपी फिर जोर लगा रही है। पिछले दो चुनावों से इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पा रहे हैं। दोनों ही दलों के लिए यह सीट अब भी चुनौती बनी हुई है। यहां से तीनों ही दलों ने नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा है। इसलिए मुकाबला कड़ा और रोचक बन गया है।