तीनों ऐसी सीटें हैं, जो भाजपा, कांग्रेस और आरएलपी दिग्गज राजनेताओं की विरासत को या तो स्थापित कर देंगी, या फिर बड़ा झटका देंगी। इन तीन सीटों में से एक सीट पर तो पूरी पार्टी का ही भविष्य टिका है, जबकि एक पर पीढ़ी दर पीढ़ी जीतते आ रहे परिवार का भविष्य दांव पर लगा है। एक सीट पर आए दिन आंदोलन कर चर्चा में बने रहने वाले नेता का वर्चस्व कायम रखने या बड़ा झटका देने के लिए जानी जाएगी।
खींवसरः आरएलपी जीती तो ही विस में बचेगा अस्तित्व
आरएलपी जीती तो पार्टी का राज्य विधानसभा में अस्तित्व बचा रहेगा, वरना एक भी विधायक नहीं बचेगा। मुख्य रूप से इस सीट पर आरएलपी के संयोजक और सांसद हनुमान बेनीवाल का भविष्य टिका है। उन्होंने पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनाव में उतारा है। पहले विधानसभा चुनाव में हनुमान ही आरएलपी के सिंबल पर चुनाव जीते थे, लेकिन उनके सांसद बनने से सीट रिक्त हो गई थी। यहां अगर हनुमान की पत्नी चुनाव जीतती है तो आरएलपी का अस्तित्व विधानसभा में बना रहेगा और हार गई तो आरएलपी का एक भी विधायक नहीं रहेगा। इस सीट पर पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा का भी भविष्य दांव पर है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में आई मिर्धा चुनाव नहीं जीत सकी हैं, लेकिन अभी भाजपा ने खींवसर का चुनाव पूरी तरह उनके भरोसे ही छोड़ रखा है। 2008 से इस सीट पर बेनीवाल परिवार का ही कब्जा है।
दौसाः सीट जीते तो किरोड़ी मजबूत होंगे, वरना कद पर पड़ेगा असर
कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीना के भाई जगमोहन मीना को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है। किरोड़ी अपने भाई को काफी समय से विधानसभा का टिकट दिलवाना चाह रहे थे, लेकिन पार्टी ने उपचुनाव में उनकी सुनी। अपने आपको परिवारवाद से दूर रखने का दावा करने वाली भाजपा ने किरोड़ी के लिए परिवारवाद का बेरियर भी तोड़ दिया। किरोड़ी लोकसभा चुनाव के बाद से ही मंत्री पद से इस्तीफा देकर बैठे हैं। यदि वे अपने भाई को चुनाव जितवाने में कामयाब रहते हैं तो उनका कद दौसा और सरकार में बढ़ना तय है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो उन्हें बड़ा झटका लगना तय है। किरोड़ी को दिल्ली में पार्टी आलाकमान का भी नजदीकी माना जाता है। यह किरोड़ी के भाई को टिकट मिलने और कांग्रेस नेता सचिन पायलट के प्रचार में उतरने से यह सीट काफी चर्चा में आ गई है।