ऐसे विधायकों को मंत्री या अन्य कोई महत्वपूर्ण पद देकर उपकृत करने की रणनीति पर सत्ता एवं संगठन में विरोधाभास है। सत्ता से जुड़े लोगों की राय में बसपा विधायकों को सरकार का हिस्सा बनाने से स्थिरता एवं मजबूती मिलेगी। जबकि संगठन से जुड़े लोगों का मानना है कि इस निर्णय का उन कार्यकर्ताओं पर नकारात्मक असर पड़ेगा, जो पांच साल संघर्ष करके पार्टी को सत्ता तक लेकर आए। अत: मंत्रिमंडल विस्तार में कांग्रेस के मूल विधायकों को ही मौका मिलना चाहिए। पार्टी की प्रदेश मुख्यालय में पिछले दिनों हुई राज्यस्तरीय बैठक में भी यह मुद्दा उठ चुका है। अब इस मामले को राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ( Sonia Gandhi ) के समक्ष रखने की कोशिश की जा रही है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( CM Ashok Gehlot ) और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ( Sachin Pilot ) दोनों ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि बसपा से आए विधायकों को मंत्री या अन्य कोई महत्वपूर्ण पद दिया जाएगा या नहीं। इस मुद्दे पर गहलोत पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि सभी छह विधायक स्वेच्छा से पार्टी में आए हैं। उन्हें सत्ता में बैठे लोगों ने मैनेज नहीं किया। पायलट भी लगातार यही कह रहे हैं कि इन विधायकों ने मंत्री या अन्य कोई पद का लोभ-लालच त्याग के पार्टी में आने की नई मिसाल कायम की है। हालांकि इस मामले में प्रदेश प्रभारी अविनाश पाण्डे ( Avinash Pandey ) की राय अलग है। उन्होंने कहा कि सरकार को जरूरत होगी तो इन विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है। यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। इस मुद्दे पर सत्ता और संगठन में कोई मतभेद नहीं है।
दरअसल सत्ता में आने के बाद से पार्टी दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। दोनों ही खेमों से जुड़े नेता लगातार बयानबाजी भी करते रहे हैं। ऐसे में हर बयान के राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। इस बीच सहयोगी दल के साथ ठीक बहुमत के आंकड़े 101 पर ठहरी कांग्रेस में 6 बसपा विधायकों को शामिल होने के बाद अब सरकार 107 के मजबूत आंकड़े पर पहुंच गई है। ऐसी स्थिति में मंत्रिमंडल विस्तार से पहले कोई भी विधायक इस मुद्दे पर अधिकारिक तौर पर बोलने को तैयार नहीं है।