हनुमान गालवा/जयपुर। भाजपा में प्रदेशाध्यक्ष को लेकर पहली बार न तो कोई लॉबिंग दिख रही है और न ही कोई दावेदार अपने समर्थन में अभियान चलाने का साहस जुटा पा रहा है। सभी को नए प्रदेशाध्यक्ष ( rajasthan bjp new state president ) के लिए केवल केंद्रीय नेतृत्व से औपचारिक घोषणा का इंतजार है। माना जा रहा है कि सदस्यता अभियान संपन्न होने के बाद प्रदेशाध्यक्ष की रूटीन में घोषणा कर दी जाएगी।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद हुए लोकसभा चुनाव ( lok sabha election result 2019 ) में मोदी लहर के प्रभाव में केंद्रीय नेतृत्व को बार-बार क्षेत्रीय क्षत्रप होने का एहसास दिलाने वाली वसुंधरा राजे को प्रदेश की राजनीति से बाहर कर दिया गया। लोकसभा चुनाव में उनकी कोई खास सक्रियता नहीं दिखी। फिर भी भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत ने प्रदेश में पार्टी की अंदरूनी राजनीति को पूरी तरह बदल दिया। अब संगठन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( rashtriya swayamsevak sangh ) के दखल का कहीं कोई विरोध नहीं नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार प्रदेशाध्यक्ष संघ की पसंद का ही आएगा।
74 दिन चली खींचतान
दो लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव में पराजय के बाद दबाव के चलते 16 अप्रेल, 2018 को अशोक परनामी को प्रदेशाध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। उस समय वसुंधरा राजे ( vasundhara raje scindia ) प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं और केंद्र में मोदी सरकार। प्रदेशाध्यक्ष पद पर वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच 74 दिन चली लंबी खींचतान के बाद राजे की पसंद मदन लाल सैनी ( Madan Lal Saini ) को प्रदेशाध्यक्ष बनाना पड़ा था।
दिवंगत प्रदेशाध्यक्ष
मदन लाल सैनी का 24 जून, 2019 को निधन हो गया, लेकिन वे अभी भी प्रदेश भाजपा की वेबसाइट ( https://rajasthanbjp.org/state-working-committee/) पर प्रदेशाध्यक्ष हैं। सैनी के निधन के बाद प्रदेश भाजपा की वेबसाइट को कई बार अपडेट किया जा चुका है। सैनी के पदनाम के उल्लेख को भी अपडेट किया गया है। प्रदेश कार्यकारिणी की सूची में प्रदेशाध्यक्ष के रूप में मदन लाल सैनी का नाम है, लेकिन उनके नाम के साथ कोष्ठक में दिवंगत लिख दिया गया।
दादेदारों में कई नाम
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद के दावेदारों में कई नाम है। राजेंद्र राठौड़ ( Rajendra Singh Rathore ) , सतीश पूनिया ( Satish Poonia) , मदन दिलावर, डॉ. अरुण चतुर्वेदी तथा सी.पी.जोशी सहित कई नामों की चर्चा है। सांसद तथा विधायकों को संगठन से दूर रखने की संघ की रणनीति के चलते राठौड़, पूनिया, दिलावर तथा जोशी की दावेदारी कमजोरी हो जाती है। चतुर्वेदी संघ के विश्वस्त हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव हारे हुए हैं। ऐसे में दावों और कयासों के बीच प्रदेशाध्यक्ष के रूप में कोई चौंकाने वाला नाम भी आ सकता है।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद हुए लोकसभा चुनाव ( lok sabha election result 2019 ) में मोदी लहर के प्रभाव में केंद्रीय नेतृत्व को बार-बार क्षेत्रीय क्षत्रप होने का एहसास दिलाने वाली वसुंधरा राजे को प्रदेश की राजनीति से बाहर कर दिया गया। लोकसभा चुनाव में उनकी कोई खास सक्रियता नहीं दिखी। फिर भी भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत ने प्रदेश में पार्टी की अंदरूनी राजनीति को पूरी तरह बदल दिया। अब संगठन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( rashtriya swayamsevak sangh ) के दखल का कहीं कोई विरोध नहीं नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार प्रदेशाध्यक्ष संघ की पसंद का ही आएगा।
74 दिन चली खींचतान
दो लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव में पराजय के बाद दबाव के चलते 16 अप्रेल, 2018 को अशोक परनामी को प्रदेशाध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। उस समय वसुंधरा राजे ( vasundhara raje scindia ) प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं और केंद्र में मोदी सरकार। प्रदेशाध्यक्ष पद पर वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच 74 दिन चली लंबी खींचतान के बाद राजे की पसंद मदन लाल सैनी ( Madan Lal Saini ) को प्रदेशाध्यक्ष बनाना पड़ा था।
दिवंगत प्रदेशाध्यक्ष
मदन लाल सैनी का 24 जून, 2019 को निधन हो गया, लेकिन वे अभी भी प्रदेश भाजपा की वेबसाइट ( https://rajasthanbjp.org/state-working-committee/) पर प्रदेशाध्यक्ष हैं। सैनी के निधन के बाद प्रदेश भाजपा की वेबसाइट को कई बार अपडेट किया जा चुका है। सैनी के पदनाम के उल्लेख को भी अपडेट किया गया है। प्रदेश कार्यकारिणी की सूची में प्रदेशाध्यक्ष के रूप में मदन लाल सैनी का नाम है, लेकिन उनके नाम के साथ कोष्ठक में दिवंगत लिख दिया गया।
दादेदारों में कई नाम
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद के दावेदारों में कई नाम है। राजेंद्र राठौड़ ( Rajendra Singh Rathore ) , सतीश पूनिया ( Satish Poonia) , मदन दिलावर, डॉ. अरुण चतुर्वेदी तथा सी.पी.जोशी सहित कई नामों की चर्चा है। सांसद तथा विधायकों को संगठन से दूर रखने की संघ की रणनीति के चलते राठौड़, पूनिया, दिलावर तथा जोशी की दावेदारी कमजोरी हो जाती है। चतुर्वेदी संघ के विश्वस्त हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव हारे हुए हैं। ऐसे में दावों और कयासों के बीच प्रदेशाध्यक्ष के रूप में कोई चौंकाने वाला नाम भी आ सकता है।