रालोपा की बात करें तो वर्तमान में विधानसभा में पार्टी के तीन विधायक और हनुमान बेनीवाल के रूप में एक सांसद मौजूद है। इस बार बेनीवाल ने घोषणा की है कि वो सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने छोटे दलों के साथ गठबंधन की बात भी कही है। हालांकि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे पार्टी के आशानुरूप नहीं कहे जा सकते हैं, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि जाट बाहुल्य सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को रालोपा से टक्कर मिलेगी। बेनीवाल ने केंद्र की मोदी सरकार से पहले ही गठबंधन तोड़ लिया था। ऐसे में अभी तक इस बात का कोई संकेत नहीं है कि वो भाजपा से साथ दोबारा गठबंधन करेंगे। पार्टी के नारायण बेनीवाल, पुखराज और इंदिरा देवी अभी विधायक हैं।
एक भी सीट नहीं जीत पाई थी आप
आम आदमी पार्टी ने 2018 के चुनाव में ही राजस्थान में दस्तक दे दी थी। उस समय कई सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी भी उतारे, मगर आप पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। हालांकि उस समय की पार्टी और आज की पार्टी में बड़ा फर्क आ चुका है। आज दिल्ली के साथ-साथ पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है। ऐसे में जोश से लबरेज पार्टी राजस्थान की सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है। पार्टी अपने संगठन को भी मजबूत कर रही है और दिल्ली के सीएम केजरीवाल की जयपुर में तिरंगा यात्रा भी निकल चुकी है। अब 18 जून को श्रीगंगानगर में केजरीवाल की मेगा रैली का आयोजन किया जाएगा।
30 से 40 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है एआईएमआईएम
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) की भी राजस्थान में एंट्री हो चुकी है। पार्टी 35 से 40 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ेगी। ऐसे में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। पार्टी यह भी साफ कर चुकी है कि वह कांग्रेस, बीजेपी और आप से गठबंधन नहीं करेगी, बल्कि उन पार्टियों से हाथ मिलाएगी जो इन सभी को हरा सकता है। पार्टी का फोकस जयपुर पर भी है। यहां हवामहल, किशनपोल और आदर्शनगर में एआईएमआईएम अपने प्रत्याशी उतारेगी। इन तीनों ही सीटों पर अभी कांग्रेस काबिज है।
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अब तक फेल रहे प्रयास
यह पहला मौका नहीं है, जब तीसरा मोर्चा राजस्थान में खड़ा होने का प्रयास कर रहा है। इससे पहले भी कई पार्टियां आई और चली गई, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 2003 के विधानसभा चुनाव में कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी ने सामाजिक न्याय मंच बनाकर चुनाव लड़ा, मगरभाटी के अलावा और कोई जीत दर्ज नहीं कर पाया। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से बागी होकर किरोड़ी लाल मीणा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी बनाई और कई उम्मीदवार मैदान में उतारे, लेकिन मीणा और उनकी पत्नी गोलमा देवी के साथ ही दो और विधायक ही चुनाव जीत पाए। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में मीणा ने रालोपा सांसद हनुमान बेनीवाल के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे का दावा करते रहे, लेकिन सफलता नहीं मिली।
भारत वाहिनी पार्टी भी रही फेल
2018 के विधानसभा चुनाव में घनश्याम तिवाड़ी ने भारत वाहिनी पार्टी बनाकर कई उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। मगर उनका एक भी उम्मीवार नहीं जीता। यहां तक कि वो खुद सांगानेर विधानसभा सीट से बुरी तरह से चुनाव हार गए। उन्होंने कांग्रेस का भी दामन थामा, लेकिन संघ विचारधारा के चलते उन्होंने वापस भाजपा जॉइन कर ली। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाकर तोहफा दिया है।