सवाई रामसिंह के दौर में 4 फरवरी 1876 को प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट जयपुर आए। उनके आगमन की तैयारियां एक साल पहले शुरू हो गई थीं। जलेब चौक और कई दरवाजों का निर्माण उसी समय हुआ। कहा जाता है कि ..’ न भूतो न भविष्यति’ उनके जैसा स्वागत जयपुर में किसी सम्राट का नहीं हुआ। रामनिवास बाग के अल्बर्ट हॉल की नींव उन्होंने ही रखी थी। उन्होंने झालाना के जंगल में बघेरों का शिकार किया और खाट पर बैठकर हुक्का भी पिया। अल्बर्ट ने जयपुर रियासत से लिया जाने वाला टैक्स भी आधा कर दिया था।
इधर, ब्रिटेन की दिवंगत महारानी एलिजाबेथ पति फिलिप के साथ 23 जनवरी 1961 को जयपुर आई थीं। उनकी शाही सवारी को देखने पूरे जयपुरवासी उमड़ पड़े थे। सवाई माधोपुर में फिलिप ने शेर का शिकार किया, जिसकी खूब चर्चा हुई थी।
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राजमहल पैलेस से चौमूं हाउस तक गोल पत्थर के खंभे और स्वागत द्वार लगाए गए। भांकरोटा जल योजना का उद्घाटन भी एलिज़ाबेथ ने किया । राज महल पैलेस के जिस कमरे में वह ठहरी थीं, वह आज एलिजाबेथ सुइट कहलाता है।सवाई मानसिंह ने 1940 में क्रिसमस के मौके पर एलिजाबेथ को हीरे जड़ी अंगूठी बतौर उपहार स्वरूप भेजी थी।
28 नवंबर सन 1980 में गायत्री देवी के मेहमान बनकर आए प्रिंस चार्ल्स लिली पूल पैलेस में ठहरे थे। रामबाग में ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने पोलो खेला। सिटी पैलेस के शस्त्रागार में मानसिंह प्रथम का खांडा और शाहजहां व जहांगीर की तलवारें भी देखीं।
29 अक्टूबर 2003 को जयपुर आए एलिजाबेथ के पुत्र प्रिंस चार्ल्स ने कमर दर्द की वजह से पोलो नहीं खेला। तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत और ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने उनकी अगवानी की थी।
12 फरवरी सन 1992 में भी प्रिंस चार्ल्स डायना के साथ जयपुर आए थे। तब पोलो मैच के दौरान डायना ने प्रिंस को स्मृति चिह्न दिया।
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प्रिंस और डायना अजमेर के नलू गांव में ग्रामीणों से मिले और रास्ते में कार से उतर कर हैंडपंप भी चलाया। माधो सिंह के शासन में प्रिंस ऑफ वेल्स जयपुर आए तब दुल्हन की तरह से सजे जयपुर में शोरगरों ने आतिश कला का बेहतरीन नमूना पेश करते हुए नाहरगढ़ पर इंग्लैंड के बकिंघम पैलेस और जॉर्ज पंचम का चित्र दिखा दिया था।
21 नवंबर 1905 को लाल वस्त्रों से सजी पालकी में बैठ शाही परिवार की महिलाओं ने शहर देखा। सिटी पैलेस के राजेंद्र पोल दरवाजे का निर्माण भी प्रिंस के आने की खुशी में हुआ था । प्रिंस ने आतिश के मैदान में हाथियों की लड़ाई देखी। उन्होंने अपने जीवन में पहला शिकार जयपुर के जंगल में ही किया था।