पार्षद पंडित करन शर्मा ने बताया कि बिना पानी के व्यक्ति, जीव-जंतू सहित पुरा संसार सूना है। उन्होंने कहा कि हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार सनातन काल से ही यज्ञ-हवन की परंपरा चली आ रही है। जनकल्याण के उद्देश्य से सच्चे मन से विधि विधान से यदि अनुष्ठान किया जाए तो उस उद्देश्य की पूर्ति होती है।ज्योतिष परिषद एव शोध संस्थान निदेशक ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ ने बताया कि पर्जन्य यज्ञ ब्रह्मांडीय प्राण के तीव्र प्रवाह से आस-पास के वातावरण को सक्रिय करता है। पवित्र गीता में इसे पर्जन्य की ‘वर्षा’ के रूप में वर्णित किया गया है – जो यज्ञ द्वारा उत्पन्न होती है, जो ब्रह्मांडीय विस्तार में उदात्त क्षेत्रों से बरसती है और जो सभी जीवित प्राणियों के जीवन और शक्ति को बनाए रखती है और हर आयाम में नया उत्साह और प्रसन्नता पैदा करती है। गीता में यज्ञ से पर्जन्य बरसने पर्जन्य से अन्न उत्पन्न होने और अन्न से बाहुल्य से सुख सम्पदा उपलब्ध होने का तथ्य प्रकाश में लाया गया है। यहाँ पर्जन्य का अर्थ आमतौर से बादल किया जाता है और यज्ञ का माहात्म्य वर्षा होना बताया जाता है।