उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम अपने पिता की स्मृतियों’ की वजह से भारी विपदा में पड़ गए थे। भगवान परशुराम के पिता की हत्या कर दी गई थी जिसके बाद से ही उनके पिता की मौत के बदले की स्मृतियों ने भगवान परशुराम के मस्तिष्क में घर कर लिया था। करौली शंकर महादेव ने कहा कि भगवान परशुराम ने कभी कोई हत्या नहीं की, लेकिन यह उनके पिता की मृत्यु से जुड़ी नकारात्मक स्मृतियों के प्रभाव में वह एक अलग राह पर निकल पड़े थे।
भगवान परशुराम ने दिवंगत आत्माओं की मुक्ति कराई
महाराज ने कहा, ‘परशुराम के प्रतिशोध का जिक्र हर जगह होता है, लेकिन इसके बाद क्या हुआ, यह कोई नहीं बताएगा।’ एक आध्यात्मिक कथा सुनाते हुए गुरुजी ने कहा- जब भगवान परशुराम के पिता से संबंधित स्मृतियाँ 21वीं बार सक्रिय हुईं, तो लोग उस स्थान की ओर भागे जहाँ भगवान जाम्बवंत और भगवान हनुमान मौजूद थे और अपने जीवन की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे क्योंकि वे निर्दोष थे और उन्होंने हत्या नहीं की थी। तब जाम्बवंत ने भगवान हनुमान से लोगों की जान बचाने के लिए कहा और उनसे यह आग्रह किया कि वे इस बात का पता लगाए कि भगवान परशुराम जैसे ऋषि इतने सारे लोगों की जान के पीछे कैसे पड़ गए हैं।
भगवान हनुमान, जो स्वयं भगवान शिव के अवतार हैं वे भगवान परशुराम का सामना करने गए। लेकिन भगवान परशुराम द्वारा उन्हें चले जाने या अन्यथा उनके क्रोध का सामना करने की चेतावनी दे दी गई। फिर पौराणिक कथा के अनुसार दोनों के बीच पांच दिनों तक भयंकर युद्ध चला। न तो भगवान परशुराम झुक रहे थे और न ही भगवान हनुमान हारना चाहते थे। लेकिन, भगवान हनुमान ने अपनी विशेष विद्या का उपयोग करके भगवान परशुराम को मूर्छित कर दिया।
तब भगवान हनुमान पितृलोक गए और भगवान परशुराम के पूर्वजों से कहा कि वे सभी अपनी नकारात्मक ‘स्मृतियों’ को समेट ले और उन्हें भगवान परशुराम के दिमाग से नष्ट कर दें। ऐसा होने के बाद भगवान परशुराम की आंखों से आंसू की दो बूंदें गिरी और वे होश में आ गए।
गुरुजी ने कहा कि हर कोई तुम्हें भगवान परशुराम का नकारात्मक पक्ष दिखाएगा लेकिन इस दुनिया में उनसे बड़ा कोई तपस्वी नहीं होगा। होश में आने के बाद भगवान परशुराम ने दिवंगत आत्माओं की मुक्ति कराई और उन्हें स्वर्ग का रास्ता दिखाया।