बनावटी दिखता है सब कुछ
कहानी बुरी नहीं है। लेकिन, इसका हिंदी रूपांतरण काफी बनावटी दिखता है। इसमें एक्शन, इमोशंस, रोमांस, चैलेंज जैसी बातें उभर कर सामने नहीं आती। यानी राइटिंग में कसावट की कमी है। स्क्रीनप्ले एंगेजिंग नहीं है। संवाद बेअसर हैं। साबिर खान का डायरेक्शन लचर और उलझा हुआ सा है। उन्होंने इस कहानी को इतने बेढंगी तरीके से पेश किया है कि झेलना मुश्किल है। फिल्म ‘मिडिल क्लास अब्बाई’ में देवर-भाभी के किरदार सीधे दर्शकों से कनेक्ट होते हैं, लेकिन ‘निकम्मा’ में ऐसा नहीं है। गीत-संगीत भी फिल्म का एक कमजोर पक्ष है। ऐसा कोई गाना नहीं है, जो जुबां पर चढ़े। संपादन सुस्त है। रन टाइम इरिटेटिंग है। फिल्म ‘रबर’ के माफिक खींची हुई है। सिनेमैटोग्राफी ठीक है। राइटिंग तो फीकी है ही, अभिमन्यु दासानी की परफॉर्मेंस भी भरोसा नहीं देती। शिल्पा शेट्टी की अदाकारी और स्क्रीन प्रजेंस स्टनिंग है। शर्ली सेतिया की क्यूटनेस लुभाती है, पर अभिमन्यु के साथ उनकी लव कैमिस्ट्री में ‘स्पार्क’ मिसिंग है। अभिमन्यु सिंह की एक्टिंग कामचलाऊ है। उन्हें अब कुछ नया करने की दरकार है। समीर सोनी, विक्रम गोखले, सचिन खेडेकर जैसे कलाकारों का रोल कुछ खास जिक्र करने लायक नहीं है। खैर, फिल्म में सब कुछ खोखला सा और नकली है। जैसा टाइटल है, वैसी ही यह फिल्म है। ऐसे में इस फिल्म में हीरो और विलेन के बीच ‘सुपर ओवर’ देखने की बजाय किसी टी-20 मैच में हुआ सुपर ओवर देख लें। कम से कम रोमांच तो आएगा। ‘निकम्मा’ को देखा तो धन तो जाएगा ही, समय भी बर्बाद होगा।