जयपुर फाउंडेशन से जुड़े सियाशरण लश्करी के मुताबिक 1918 के नए साल पर सेठ बलदेव दास बिड़ला को राय बहादुर एवं 1924 में वंशानुगत राजा की उपाधि दी गई। सन् 1885 में ईशानचन्द्र मुखर्जी उर्फ हाथी बाबूजी को राय बहादुर की एवं 1936 में एस.पी. बीएम चक्रवर्ती को किंग्स मैडल, 1937 में न्यायाधीश शीतला प्रसाद वाजपेयी को कम्पेनियन ऑफ इंडियन एम्पायर से नवाजा गया। प्यारे लाल भार्गव को दीवान बहादुर, अब्दुल अजीज को खान बहादुर व नरेन्द्र सिंह जोबनेर को राव बहादुर की उपाधि दी गई। राम प्रकाश थियेटर में दानवीर कर्ण का तमाशा देखने रेजीडेंट रोनाल्ड व महाराजा मानसिंह भी हाकिमों व सामंतों के साथ पंहुचे।
राजपूताना के अंग्रेज हाकिमों को ढूढाड़ के जंगलों में नया साल मनाने का खासा चाव रहता। सन् 1923 में सैंथल सागर में लगे पचास तम्बुओं में रेजीडेंट ग्लांसी, राजकोट एजीजी बुड आदि ने नया साल मनाया। नाहरगढ़, सिटी पैलेस, अल्बर्ट हॉल को गैस की रोशनी से सजाया और स्कूलों में लड्डू बांटे। 31 दिसम्बर 1897 की रात को जयपुर क्लब में एजीजी क्रास्थवेस्ट के सम्मान में जलसा हुआ। उन दिनों रुस्तमजी का रॉयल होटल, जयपुर होटल, न्यू होटल, केसर हिंद आदि होटलों में न्यू ईयर पर डांस व डीनर पार्टियां होती थी। सन् 1921 में कश्मीर महाराजा प्रतापसिंह आए। ईडर के सर प्रताप, मैसूर महाराजा वाडियार नए साल पर आए तब उनके सम्मान में लखनऊ व आगरा की नृत्यांगनाओं ने मुजरा किया और घुड़दौड़ हुई। जनानी ड्योढी में भी नए साल की महफिल में परदायतों को सोने चांदी के आभूषण भेंट किए जाते।