जयपुर। राजस्थान से राज्यसभा सांसद नीरज डांगी की ओर से संसद के मानसून सत्र में राज्य सभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया जाएगा। ये बिल निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति और जनजातियों की भागीदारी को लेकर है। इस बिल पर मानसून सत्र में चर्चा कराई जा सकती है।
बिल में ये खास बिंदु—
संसद में प्रस्तावित बिल ‘निजीकरण के युग में विविधता और प्रभावी कार्रवाई‘ के तहत कई बिन्दुओं को शामिल किया गया है। इनमें रोजगार के मामलों में भेदभाव को प्रतिबंधित करने और निजी क्षेत्र के रोजगार में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को व्यापार, वाणिज्य, अनुबंध, निर्माण, परिवहन या उपयोगिता सेवाओं में समान अवसर और सर्वांगीण भागीदारी सुरक्षित किए जाने का प्रावधान है। इस बिल पर जाने माने कानूनविद, समाज शास्त्री, उद्योगपति और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधियों से विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। ये बिल सर्वोच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति के.रामास्वामी की ओर से तैयार किया गया है।
बिल में ये खास बिंदु—
संसद में प्रस्तावित बिल ‘निजीकरण के युग में विविधता और प्रभावी कार्रवाई‘ के तहत कई बिन्दुओं को शामिल किया गया है। इनमें रोजगार के मामलों में भेदभाव को प्रतिबंधित करने और निजी क्षेत्र के रोजगार में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को व्यापार, वाणिज्य, अनुबंध, निर्माण, परिवहन या उपयोगिता सेवाओं में समान अवसर और सर्वांगीण भागीदारी सुरक्षित किए जाने का प्रावधान है। इस बिल पर जाने माने कानूनविद, समाज शास्त्री, उद्योगपति और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधियों से विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। ये बिल सर्वोच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति के.रामास्वामी की ओर से तैयार किया गया है।
संविधान में मुख्य धारा में लाने की बात—
राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने बताया कि भारत का संविधान अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर जोर देता है और संविधान की प्रस्तावना में सभी को सामाजिक-आर्थिक न्याय की गारंटी देता है। मौजूदा परिदृश्य में आर्थिक नीति में परिवर्तन हो रहा है। निजीकरण में वृद्धि, व्यापार उदारीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के विनिवेश के चलते अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण में राज्य पीछे हट रहे है। जबकि निजी क्षेत्र ने जब से सार्वजनिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में प्रवेश और संचालन प्राप्त किया है, सामाजिक-आर्थिक न्याय, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक मौलिक अधिकार को सुरक्षित करने के दायित्व के बिना अपने आर्थिक कार्यों का विस्तार किया है।
राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने बताया कि भारत का संविधान अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर जोर देता है और संविधान की प्रस्तावना में सभी को सामाजिक-आर्थिक न्याय की गारंटी देता है। मौजूदा परिदृश्य में आर्थिक नीति में परिवर्तन हो रहा है। निजीकरण में वृद्धि, व्यापार उदारीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के विनिवेश के चलते अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण में राज्य पीछे हट रहे है। जबकि निजी क्षेत्र ने जब से सार्वजनिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में प्रवेश और संचालन प्राप्त किया है, सामाजिक-आर्थिक न्याय, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक मौलिक अधिकार को सुरक्षित करने के दायित्व के बिना अपने आर्थिक कार्यों का विस्तार किया है।
न्यूनतम भागीदारी पर जोर— इस बिल में ये भी प्रावधान किया गया है कि निजी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की न्यूनतम भागीदारी सुनिश्चित की जाए। साथ ही अभी निजी क्षेत्र की सेवा, व्यापार, वाणिज्य, व्यवसाय, अनुबंध, परिवहन, उपयोगिता सेवाओं में सुविधाएं और अवसर में उनके खिलाफ भेदभाव होता है।इसीलिए इस बारे में कानून बनाने की जरूरत है।