हूपर का पता नहीं कहां जाएगा:
जब डोर—टू—डोर कचरा संग्रहण की शुरुआत हुई थी, उस समय एक एप के जरिए हूपर की लोकेशन ट्रेस की जा सकती थी, लेकिन अब हूपर के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिलती है। हूपर कब आएगा यह किसी को पता ही नहीं चलता?
जब डोर—टू—डोर कचरा संग्रहण की शुरुआत हुई थी, उस समय एक एप के जरिए हूपर की लोकेशन ट्रेस की जा सकती थी, लेकिन अब हूपर के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिलती है। हूपर कब आएगा यह किसी को पता ही नहीं चलता?
हूपर की संख्या सीमित:
2018 में जब जयपुर में स्वच्छता सर्वेक्षण ( swachta servey ) में 39वीं रैंक हासिल की थी, उस समय 800 से अधिक हूपर चलते थे। अभी 550 के आस-पास ही हूपर शहर के 91 वार्डों से कचरा उठा रहे हैं। 11 जुलाई को कमिश्नर विजय पाल सिंह और कंपनी के अधिकारियों के बीच हूपर के तय समय पर आने की बात हो चुकी है।
2018 में जब जयपुर में स्वच्छता सर्वेक्षण ( swachta servey ) में 39वीं रैंक हासिल की थी, उस समय 800 से अधिक हूपर चलते थे। अभी 550 के आस-पास ही हूपर शहर के 91 वार्डों से कचरा उठा रहे हैं। 11 जुलाई को कमिश्नर विजय पाल सिंह और कंपनी के अधिकारियों के बीच हूपर के तय समय पर आने की बात हो चुकी है।
सफाई में नवाचार की जरूरत
इंटरनेशनल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन,इंडिया के चेयरमैन विवेक अग्रवाल का कहना है कि राजधानी में सफाई ( safai )व्यवस्था अच्छी नहीं है। इसमें नवाचार की जरूरत है। जयपुर में 1990 में कचरा परिवहन में निजीकरण हुआ। इसके बाद 1994 में बापू नगर से पहली बार निजी स्तर पर घर-घर कचरा संग्रहण की शुरुआत हुई। जयपुर के परकोटा क्षेत्र के अलावा कचरे को गीला-सूखा अलग अलग किए जाने की शुरुआत भी निजी स्तर पर हुई। अब अस्त—व्यस्त हो चुका है।
इंटरनेशनल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन,इंडिया के चेयरमैन विवेक अग्रवाल का कहना है कि राजधानी में सफाई ( safai )व्यवस्था अच्छी नहीं है। इसमें नवाचार की जरूरत है। जयपुर में 1990 में कचरा परिवहन में निजीकरण हुआ। इसके बाद 1994 में बापू नगर से पहली बार निजी स्तर पर घर-घर कचरा संग्रहण की शुरुआत हुई। जयपुर के परकोटा क्षेत्र के अलावा कचरे को गीला-सूखा अलग अलग किए जाने की शुरुआत भी निजी स्तर पर हुई। अब अस्त—व्यस्त हो चुका है।
इन कमियों को दूर करने की जरूरत
1. एक पर निर्भर रहना ठीक नहीं-
निगम ने एक कंपनी को कचरा उठाने का ठेका दे रखा है।
2. नवाचारों की कमी-
कुछ भी नया करने से निगम और कचरा उठाने वाली कंपनी से बचती है। माइक्रो प्लानिंग की जरूरत है।
3. मॉनीटरिंग का अभाव-
कहां कचरा उठ रहा है, कहां नहीं। इसकी जानकारी निगम में किसी के पास नहीं है। नियमित मॉनीटरिंग बेहतर करने की जरूरत है।
4. ठेकेदारों के भरोसे काम-
निगम ने एक कंपनी को ठेका दे दिया और कंपनी ने उन ठेकेदारों को ही जोड़ लिया जो पहले से अव्यवस्था का हिस्सा थे।