अभी निगम के बाड़े में 500 से ज्यादा गोवंश पल रहे हैं जिन पर प्रतिमाह खाने पीने, इलाज व सुरक्षा पर 22 लाख का खर्चा आ रहा है। । नगर निगम का काइन हाउस अभी सडक़ों पर लावारिस घूमते पकड़े गए गोवंश से पूरा भरा है। उन्हें वहां अलग-अलग रखा गया है। प्रतिदिन एक गाय, बैल को खाने के लिए 15 किलो हरा व 5 किलो सूखा चारा दिया जा रहा है, वहीं इनके इलाज के लिए प्रतिदिन चिकित्सकीय टीम आ रही है। उनकी सुरक्षा के लिए 15 गार्ड प्रतिदिन लगे हुए है।
जुर्माना व नीलामी की न्यूनतम दर भी ज्यादा:
सडक़ों से पकड़े गए गोवंश को छुड़वाने के लिए निगम ने 5 हजार रुपए का जुर्माना तय कर रखा है। अधिकांश गोवंश की कीमत जुर्माने से भी कम है, इस कारण लोग वापस उन्हें छुड़वाने नहीं आते हैं। अगर उन्हें कोई छुड़वा भी लेे तो उसे वापस सिटी तक लाने का परिवहन खर्च अतिरिक्त वहन करना पड़ता है।
सडक़ों से पकड़े गए गोवंश को छुड़वाने के लिए निगम ने 5 हजार रुपए का जुर्माना तय कर रखा है। अधिकांश गोवंश की कीमत जुर्माने से भी कम है, इस कारण लोग वापस उन्हें छुड़वाने नहीं आते हैं। अगर उन्हें कोई छुड़वा भी लेे तो उसे वापस सिटी तक लाने का परिवहन खर्च अतिरिक्त वहन करना पड़ता है।
नीलामी में भी रुझान नहीं:
निगम ने प्रति गोवंश की न्यूनतम बोली 5 हजार रुपए तय की है। अधिकांश गोवंश प्लास्टिक खाने के कारण किसी काम का नहीं होने से लोग रुझान नहीं दिखाते। दुधारू गाय के लिए कुछ लोग पैसा खर्च करते हैं। निगम अब तक एक साल में तीन से चार बार नीलामी प्रक्रिया कर चुका है, लेकिन 500 गोवंश में से महज 20 को ही लोग ले गए।
निगम ने प्रति गोवंश की न्यूनतम बोली 5 हजार रुपए तय की है। अधिकांश गोवंश प्लास्टिक खाने के कारण किसी काम का नहीं होने से लोग रुझान नहीं दिखाते। दुधारू गाय के लिए कुछ लोग पैसा खर्च करते हैं। निगम अब तक एक साल में तीन से चार बार नीलामी प्रक्रिया कर चुका है, लेकिन 500 गोवंश में से महज 20 को ही लोग ले गए।
निशुल्क फिर भी नहीं ले जा रहे:
निगम ने खेती योग्य जमीन के दस्तावेज पेश करने पर उन किसानों को गोवंश निशुल्क देने की घोषणा की लेकिन कोई नहीं आया। किसानों का कहना था कि प्लास्टिक खाने से गाय मालिकों ने भी उन्हें छोड़ दिया। दूध नहीं देने व खेती के काम नहीं आने से वे उन्हें नहीं ले रहे हैं।
निगम ने खेती योग्य जमीन के दस्तावेज पेश करने पर उन किसानों को गोवंश निशुल्क देने की घोषणा की लेकिन कोई नहीं आया। किसानों का कहना था कि प्लास्टिक खाने से गाय मालिकों ने भी उन्हें छोड़ दिया। दूध नहीं देने व खेती के काम नहीं आने से वे उन्हें नहीं ले रहे हैं।