मनीष बैद ने बताया कि गुरु वंदना के बाद केश लोंच कार्यक्रम हुआ। बतौर लंबे समय तक चिकित्सक रहे डॉ मनोज के हाथ में अब स्टेथोस्कोप, सिरिंज की जगह हाथ में पिच्छिका रहेगी। संयम पथ में सहायक उपकरण पिच्छिका, कमंडलु और शास्त्र तीनों ही वस्तुएं एक-एक करके क्षुल्लक सर्वजीत सागर को प्रदान की गई। उनके वैराग्यगामी होने का दृश्य देखकर परिजन के साथ ही भक्त भाव-विह्वल हो उठे। उनके परिवार में पत्नी, एक पुत्र और बहु है।
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रविन्द्र बज ने बताया कि डॉ मनोज यूपी के आचार्य विमलसागर की जन्मभूमि कोसमा आगरा-एटा जिले में भी एक अस्पताल के ट्रस्टी रह चुके हैं। जहां सारी जमापूंजी उन्होंने वहां असहाय तबके के निशुल्क इलाज के लिए समर्पित कर दी। करीब 35 वर्ष तक चिकित्सा के प्रोफेशन के बाद अब वे क्षुल्लक के रूप में आत्मकल्याण के साथ ही मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होंगे।
जानकारी के अनुसार इनके पिता-माता भी जैनेश्वरी दीक्षा ले चुके हैं। इसके साथ ही छोटी बहन आर्यिका शाश्वत श्री भी आचार्य चैत्यसागर के संघ में हैं।
धर्मसभा में आचार्य ने कहा कि जैन धर्म में दीक्षा का अर्थ राग से वैराग्य की ओर जाना होता है। साथ ही त्याग और संयम को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। दीक्षा कठिन परीक्षा के साथ ही आत्मीयता की आराधना है। दीक्षा के बाद आचार्य ने गोपालपुरा बाईपास मंगल विहार स्थित जैन मंदिर के लिए विहार किया।
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