जयपुर

करोड़पति डाक्टर ने ली दीक्षा, अब कहलाएंगे क्षुल्लक सर्वजीत सागर

Millionaire Doctor Took Deeksha : जब लोग धन और यश के लिए दौड़ लगा रहे हैं। ऐसे वक्त में एक बड़े करोड़पति डाक्टर ने अपना सब कुछ त्याग कर दीक्षा ले ली है। अब उनका नया नाम क्षुल्लक सर्वजीत सागर होगा। एक ताज्जुब की बात यह है कि उनके माता-पिता और बहन भी दीक्षा ले चुके हैं। जरा सोचिए।

जयपुरFeb 12, 2024 / 12:27 pm

Sanjay Kumar Srivastava

Millionaire Doctor Took Deeksha

Rajasthan News : जब लोग धन और यश के लिए दौड़ लगा रहे हैं। ऐसे वक्त में एक बड़े करोड़पति डाक्टर ने अपना सब कुछ त्याग कर दीक्षा ले ली है। अब उनका नया नाम क्षुल्लक सर्वजीत सागर होगा। एक ताज्जुब की बात यह है कि उनके माता-पिता और बहन भी दीक्षा ले चुके हैं। राजस्थान के जयपुर के मुनिसंघ सेवा समिति बापू नगर की ओर से रविवार को भट्टारकजी की नसियां में दीक्षा समारोह हुआ। आचार्य चैत्यसागर के सान्निध्य में हुए आयोजन में अहमदाबाद के एक अस्पताल के मालिक डॉ मनोज सांघवी (63) ने दीक्षा ली। अब वे क्षुल्लक सर्वजीत सागर कहलाएंगे। उनके माता-पिता व बहन भी दीक्षा ले चुके हैं।



मनीष बैद ने बताया कि गुरु वंदना के बाद केश लोंच कार्यक्रम हुआ। बतौर लंबे समय तक चिकित्सक रहे डॉ मनोज के हाथ में अब स्टेथोस्कोप, सिरिंज की जगह हाथ में पिच्छिका रहेगी। संयम पथ में सहायक उपकरण पिच्छिका, कमंडलु और शास्त्र तीनों ही वस्तुएं एक-एक करके क्षुल्लक सर्वजीत सागर को प्रदान की गई। उनके वैराग्यगामी होने का दृश्य देखकर परिजन के साथ ही भक्त भाव-विह्वल हो उठे। उनके परिवार में पत्नी, एक पुत्र और बहु है।

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रविन्द्र बज ने बताया कि डॉ मनोज यूपी के आचार्य विमलसागर की जन्मभूमि कोसमा आगरा-एटा जिले में भी एक अस्पताल के ट्रस्टी रह चुके हैं। जहां सारी जमापूंजी उन्होंने वहां असहाय तबके के निशुल्क इलाज के लिए समर्पित कर दी। करीब 35 वर्ष तक चिकित्सा के प्रोफेशन के बाद अब वे क्षुल्लक के रूप में आत्मकल्याण के साथ ही मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होंगे।



जानकारी के अनुसार इनके पिता-माता भी जैनेश्वरी दीक्षा ले चुके हैं। इसके साथ ही छोटी बहन आर्यिका शाश्वत श्री भी आचार्य चैत्यसागर के संघ में हैं।



धर्मसभा में आचार्य ने कहा कि जैन धर्म में दीक्षा का अर्थ राग से वैराग्य की ओर जाना होता है। साथ ही त्याग और संयम को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। दीक्षा कठिन परीक्षा के साथ ही आत्मीयता की आराधना है। दीक्षा के बाद आचार्य ने गोपालपुरा बाईपास मंगल विहार स्थित जैन मंदिर के लिए विहार किया।

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