जयपुर

दुश्मनों की गोलियां खाईं, 64 दिन तक बर्फ में दबे रहे, जानें राजस्थान के शूरवीर मंगेज सिंह की शहादत की कहानी

राजस्थान के नागौर के रहने वाले सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ ने कारगिल युद्ध के दौरान देश के लिए सीने में गोलियां, तोहफे के रूप में खाई। आज ‘जरा याद करो कुर्बानी’ में कहानी सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ की…

जयपुरJan 17, 2024 / 05:05 pm

Anant

आजादी की कितनी गाथा आपने सुनी और पढ़ी होगी। जिसमें देशभर के सैकड़ों वीर जवान इस देश की मिट्टी को दुश्मनों के चंगुल से बचाने के लिए अपने प्राणों की हंसते- हंसते आहूति दे गए। देश भर में ऐसी कई मिसालें हैं। सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे वीरों का नाम शायद ही किसी देशवासी ने ना सुना हो। जिन्होंने किशोरावस्था में ही अंग्रेजों से लोहा लेने की ठानी। वह 23 वर्ष के ही हुए थे कि उन्हें समेत उनके दो साथियों को फांसी सुना दी गई। वीरों ने झुकने के बजाय फांसी के फंदे को गले से लगा लिया। ऐसी ही वीरता की मिसाल पेश किया है राजस्थान के नागौर के रहने वाले सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ ने। जिसने कारगिल युद्ध के दौरान देश के लिए सीने में गोलियां, तोहफे के रूप में खाई। आज ‘जरा याद करो कुर्बानी’ में कहानी सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ की…


अकेले दुश्मनों को खदेड़ा


शहीद सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ का जन्म साल 1959 में प्रदेश के नागौर जिले के परबतसर उपखंड क्षेत्र के गांव हरनावां में हुआ। अपने माता-पिता की तीसरी संतान के रूप में तीन बेटों में वे सबसे छोटे थे। 10वीं कक्षा पास करने के पश्चात संतोष कँवर से उनका विवाह हो गया। हालांकि उनका सेना में जाने का बचपन का सपना था, जिसे वह साकार करने में सफल रहे।


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मंगेज सिंह राठौड़ का भारतीय सेना की 11वीं राजपूताना राइफल्स बटालियन में सूबेदार के पद पर तैनाती हुई। कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें 10 अन्य सैनिकों के साथ तुर्तुक क्षेत्र में भेजा गया। जहां पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सरहद की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ को इसका मुकाबला करते हुए, दुश्मनों को सरहद से बाहर धकेलना था।

वह अपने अन्य साथियों के साथ आगे बढ़े। इस दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के जवानों पर ऑटोमेटिक हथियारों हमला कर दिया। जिससे कुछ अन्य साथी घायल हो गए। सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ ने इससे मुकाबला करने का फैसला किया, इस दौरान दुश्मनों के गोलियों से वह घायल हो गए। बावजूद इसके वह अपने अंतिम सांस तक दुश्मनों के सामने डटे रहे। वह 6 जून 1999 को शहीद हो गए।

8 हफ्ते तक नहीं मिल पाई थी पार्थिव शरीर


6 जून 1999 को उनकी शहादत के बाद यह सूचना उनके परिवारजनों को प्राप्त हुई। पत्नी संतोष कँवर ने तत्कालीन सरकार से उनके शव को पैतृक आवास तक लाने का अनुरोध किया। बताया जाता है कि उनके शहादत के बाद उनका शव बर्फ की मोटी चादर में दब गया था। परिवार के अनुरोध के बाद तालाशी की गई। इस दौरान उनकी पत्नी ने प्रण किया है कि जबतक वह अपने शहीद पति का चेहरा नहीं देख लेती वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगी। करीब महीनों तक वह बिना अन्न-पानी का उनका इंतजार करती रहीं। आखिर कर 64 दिन बाद शहीद सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ का पार्थिव शरीर खोजा जा सका। जिसके बाद, राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।


वीर चक्र से नवाजे गए


शहीद सूबेदार मंगेज सिंह राठौड़ को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया और उनके नाम पर कारगिल में भारत के कब्जे वाले कुछ क्षेत्र का नामकरण मंगेज सिंह हरनावा के नाम पर किया गया। वहीं, प्रदेश सरकार ने भी उनके नाम से एक विद्यालय का नामकरण किया है।

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