सबकी आंखों के सामने जयपुर की सबसे बड़ी मानसागर झील (जलमहल) का गला घोंट दिया गया। चहेतों को उपकृत करने के लिए संस्थागत तौर पर ऐसा भ्रष्टाचार हुआ कि झील के भराव क्षेत्र में मिट्टी डालकर उसे पाटने का काम शुरू हो गया। राज्य सरकार और उद्योगपतियों ने हाथ क्या मिलाया पूरा तंत्र झील की हत्या करने में जुट गया। उद्योगपति और आईएएस की निगरानी में 116 फीट भराव क्षमता के बांध को पहले ही चरण में घटाकर 112 फीट कर दिया।
कागजी रिकॉर्ड में भले ही अधिकतम गहराई बीस फीट दर्ज है लेकिन हकीकत में छह से आठ फीट पानी बच जाए तो बहुत है। पहले बांध में 85 मिलियन क्यूसिक फीट पानी रहता था। अब पानी की आवक के रास्ते रोकने से झील सिकुड़ कर तलैया नजर आती है। पूरे तंत्र ने मिलकर इस तरह झील का वजूद खत्म करने की नींव रखी। ऐसा अकेले जलमहल के मामले में नहीं हुआ बल्कि कमोबेश हर जिले में ऐसे ही प्रमुख तालाब और झील का गला घोंटा गया। अजमेर में आनासागर झील और फायसागर तालाब, कोटा में किशोर सागर तालाब, उदयपुर में फतेह सागर झील ऐसे तमाम उदाहरण हैं।
पर्यटन विकास के नाम पर तत्कालीन वसुंधरा सरकार के शासन में पहले तो बांध केगेज को घटाने का खेल हुआ। फिर भराव क्षेत्र की खाली भूमि को पर्यटन इकाई के रूप में विकसित करने के लिए भराव क्षेत्र की करीब 100 एकड़ से अधिक भूमि 99 साल के लिए लीज पर दे दी गई। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद लीज अवधि घटाकर 30 साल की गई।
झील का भराव क्षेत्र घटने का दुष्प्रभाव यह हुआ कि मानसून में झील की बजाय सड़कों और आस-पास के क्षेत्र में जलभराव हो रहा है। थोड़ी सी बारिश में ही झील का पानी सड़कों को लबालब कर देता है। नालों का पानी झील में समा रहा है। बदबू के कारण पर्यटक जलमहल की पाल पर रुक ही नहीं पाते। दु:ख इस बात का भी है कि करोड़ों रुपए बहाने के बावजूद झील में ट्रीटेड पानी की व्यवस्था नहीं की जा सकी।
झील की जरूरत और उसकी महत्ता इससे भी समझी जा सकती है कि 15वीं सदी में आमेर रियासत के राजा मानसिंह प्रथम ने मानसागर झील बनवाई। तीन तरफ पहाड़ियों से झील में पानी आता था और भराव क्षेत्र लबालब रहता था।
अब बदले हालात में मानसून खत्म होते ही झील के पेटे में पानी कम हो जाएगा। झील को मूल स्वरूप में लौटाने और आस-पास के क्षेत्र को तलैया में तब्दील होने से बचाने के लिए अब जरूरी है कि झील के जिस हिस्से को पाटा गया, वहां से मिट्टी हटाई जाए। इससे न केवल झील के पेटे का विस्तार होगा बल्कि पानी की आवक भी ज्यादा होगी। इससे भू-जल स्तर बढ़ेगा और स्थानीय लोगों को जलभराव की परेशानी से भी निजात मिलेगी। पर्यटन विभाग को चाहिए कि वह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में याचिका लगाए। अन्यथा न मानसागर झील बचेगी और न ही जलमहल का कोई वजूद।
जयपुर में प्रवासी पक्षी मानसागर झील में आते हैं लेकिन साफ-सफाई नहीं होने और पानी की कमी से प्रवासी पक्षियों का आना भी धीरे-धीरे कम हो रहा है। झील में केमिकल युक्त पानी से मछलियां मर रहीं हैं, संक्रमण का भी खतरा भी दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अब जरूरी है कि राज्य सरकार इच्छाशक्ति और जनहित को सर्वोपरि रखकर झील का पुराना और विस्तृत स्वरूप लौटाने की दिशा में कदम बढ़ाए। फिर चाहे इसके लिए तालाब के पेटे में भरी गई तमाम मिट्टी को ही क्यों न खोदकर बाहर निकलवाना पड़े। यकीन मानिए, इस निर्णय पर पूरा जयपुर झील के पुनरुत्थान के लिए कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ा होगा।