इसके बाद युवतियों ने एक के बाद एक सवाल किया और सिस्टम मेें खामियां निकाली। इस दौरान गरिमा हेल्पलाइन में कार्यरत काउंसर लक्ष्मी मधुकर सवालों के जबाव तक नहीं दे पाई और पूरी तरह लाचार नजर आई। युवतियों ने जयपुर के अलावा प्रदेश के अन्य जिलों और देश के विभिन्न राज्यों में इस तरह के सेंटर खोलने की जरूरत बताई। साथ ही सेंटर पर एक मनोचिकित्सक, डॉक्टर और एक महिला पुलिसकर्मी की जरूरत भी बताई। युवतियों ने काउंसर से महिलाओं की समस्या और लगातार बढ़ रही शिकायतों के बारे में विस्तार से चर्चा की। बता दें कि आईसेक संस्था के जरिए ये युवतियां राजधानी में महिलाओं मुद्दों पर आधारित एक प्रोजक्ट पर काम कर रही हैं।
सुनो सरकार! विदेशियों के ये सवाल आपसे हैं
छह साल से हेल्पलाइन चल रही शिकायतें कम होनी चाहिए, बढ़ क्यों रही
एक ही सेल हैं, हर जिलें मेें क्यों नहीं है? इससे तो मदद मिलेगी?
इतने केस आप अकेले कैसे हैंडल करती हैं?
शिकायतें आने का कारण क्या है जागरूकता बढ़ी है या समस्या?
सबसे ज्यादा शिकायतें कहां से आती हैं, ग्रामीण या शहरी क्षेत्र से ?
सरकार फाइनेंशियन मदद करती हैं, मानसिक रूप से कैसे मदद होती हैं?
इधर…अभिभावकों को दिया सुझाव
पेरेंट्स बेटियों को दबाएं नहीं, खुलकर शिकायत की छूट दें
युवतियों ने यूरोप देशों का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां ऐसी घटनाएं कम होती हैं। कारण है कि वहां लड़कियां खुलकर पुलिस और मीडिया के सामने जाकर उत्पीडऩ का विरोध करती हैं। इससे अपराधी भयभीत हो जाते हैं। पहले ऐसे मामलों की संख्या ज्यादा थी, अब कम हो गए हैं। लेकिन भारत में खुद अभिभावक बेटियों को बोलने नहीं देते। घटना होने पर लड़कियां शिकायत तक नहीं करती। इसीलिए यहां केस बढ़ रहे हैं।
जयपुर से आगे नहीं बढ़ पाई योजना
बता दें कि निर्भया कांड के बाद पिछली गहलोत सरकार ने 2012-13 में जयपुर कलक्ट्रेट से 7891091111 नंबर की गरिमा हेल्पलाइन की शुरूआत की थी। हेल्पलाइन की कमेटी भी बनाई गई, जिसका अध्यक्ष जयपुर कलक्टर को बनाया, साथ ही एडीएम से लेकर एसडीएम तक इसमें सदस्य हैं। लेकिन हैरत की बात है कि हेल्पलाइन सिर्फ एक काउंसर के भरोसे ही चल रही हैं और जयपुर से आगे यह नहीं बढ़ पाई। सालभर में करीब 8 हजार शिकायतें इसमें आती हैं। घरेलू हिंसा, रेप, साइबर क्राइम, बाल विवाह, कन्या भू्रण हत्या की शिकायतें यहां आ रही हैं। जहां से संबंधित थानों में इन्हें भेजकर समाधान करवाया जा रहा है।