कहते है कि यहां पर भगवान की प्रतिमा अपने आप चलकर आई थी। आमेर से प्रतिमा लेकर आई बैलगाड़ी यहां पर अपने आप थम गई थी। फिर यहीं पर भगवान महावीर का विशाल मंदिर बना। 200 साल पहले संवत 1867 में भूमि खरीदकर मंदिर की नींव रखी।
दरअसल आमेर के एक मंदिर में दो मूर्तियां मिलीं। इन्हें अलग-अलग दो बैलगाड़ियों पर बिना सारथी के छोड़ने का निर्णय लिया। ऐसे में एक बैलगाड़ी आमेर की नसियां के दरवाजे पर खड़ी हो गई तो दूसरी बैलगाड़ी, जिसमें भगवान महावीर स्वामी की खड़गासन मूर्ति विराजमान थी। स्वत: चलती हुई गोपाल जी का रास्ता स्थित मंदिर के सामने खड़ी हो गई।