शिमला, दिल्ली, माउंट आबू, अजमेर और उदयपुर आदि के ब्रिटिश अधिकारी अपनी मेम और बच्चों सहित जयपुर आते थे। उन्हें रेजीडेंसी और सिविल लाइन्स के बंगलों में जयपुर का राजकीय मेहमान बनाकर ठहराया जाता था। दिवाली पर महाराजा को बधाई देने जयपुर का ब्रिटिश रेजीडेंट फलों का टोकरा, गुलदस्ता और सुगंधित इत्र के साथ हाथी पर बैठ सिटी पैलेस जाता था। ब्रिटिश मेहमान बग्घियों में बैठकर रोशनी देखने निकलते थे।
जयपुर रियासत के लिए खास थी वर्ष 1931 की दिवाली
वर्ष 1931 की दिवाली का त्योहार जयपुर रियासत के लिए खास खुशियां लेकर आया था। दिवाली से एक पखवाड़ा पहले ही तत्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय की पटरानी मरुधर कंवर ने ज्येष्ठ पुत्र भवानी सिंह को रामबाग के महल में जन्म दिया था । कछवाहा वंश में दो पीढ़ियों के बाद पुत्र जन्म की खुशी में दिवाली भी दोगुनी खुशी और उल्लास के साथ मनाई गई थी। चन्द्र महल आदि इमारतों पर देशी घी के दीपक जलाए गए थे। रामबाग व सिटी पैलेस में शोरगरों ने आतिशबाजी के कमाल दिखाए। पुत्र जन्म से खुश सवाई मान सिंह ने गोबिंद देव जी मंदिर में सोने की मोहरें चढ़ाई थीं व अन्य मंदिरों में चांदी के 52 हजार रुपये की भेंट भेजी थी।जयपुर की दिवाली देखने मेहमान बन कर आए थे ग्वालियर के महाराजा
जयपुर फाउंडेशन के अध्यक्ष सिया शरण लश्करी के पास मौजूद रिकॉर्ड के मुताबिक वर्ष 1876 में ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा जीवाजी राव सिंधिया जयपुर की दिवाली देखने सवाई रामसिंह द्वितीय के मेहमान बन कर आए थे। उन्हें चमेली वाला मार्केट के मुमताज महल में ठहराया गया था। सिंधिया के सम्मान में सिटी पैलेस के सर्वतो भद्रा सभागार में विशेष रूप से दिवाली दरबार लगाकर अभिनंदन किया गया। सिंधिया के सम्मान में सजी संगीत की महफिल में जोधपुर राजदरबार की प्रसिद्ध नृत्यांगना नन्ही जान जयपुर आई थी। उन्हें उस जमाने में चांदी के सवा सौ रुपए व आभूषण आदि इनाम दी गई। सवाई माधोसिंह द्वितीय के शासन में बीकानेर के तत्कालीन महाराजा गंगा सिंह दिवाली पर जयपुर आए थे। गंगा सिंह ने माधोसिंह के साथ बग्घी में बैठकर रोशनी देखी थी व उन्हें सिटी पैलेस के मुबारक महल में ठहराया गया था। वर्ष 1951 की दिवाली पर आयोजित दरबार में सवाई मान सिंह ने प्रजा मंडल के नेता देवी शंकर तिवाड़ी को खास मेहमान के रूप में बुलाया था।