ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि आज सुबह स्नान करके अहोई माता की पूजा व व्रत का संकल्प लें। शाम को तारे निकलने पर दीवार पर गेरू से अहोई माता की आकृति बनाकर पूजन करें। पूजन सामग्री में अहोई, चांदी या मोती की माला, जल—कलश, दूध-भात, मिष्ठान्न में खासकर हलवा रखें। दीप, पुष्प आदि से अहोई माता की पूजा करें और व्रत कथा सुनें। अंत में तारों या चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें।
यह व्रत मुख्य रूप से संतान सुख के लिए रखा जाता है। महिलाएं व्रत रखकर अपनी संतान के स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना करती हैं। जिन महिलाओं को किसी कारणवश संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए इस व्रत का विशेष महत्व है। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार जिनकी संतान गर्भ में ही नष्ट हो जाती हो, बार—बार गर्भपात होते हों, प्रसव के बार संतान की मौत हो जाती हो, उन्हें भी यह व्रत रखना चाहिए।
अहोई अष्टमी पर संभव हो तो महिलाएं पूरा दिन निराहार व्रत रखें या केवल फलाहार करें। शाम को तारों या चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत तोड़ें। मान्यता है कि इससे प्रसन्न होकर माता पार्वती के आशीर्वाद से संतान सुख जरूर प्राप्त होता है।