वर्ष 1971-72 में मिर्धा के पहले लोकसभा चुनाव में उनके बूथ एजेंट रहे एडवोकेट राधेश्याम संगवा के अनुसार मिर्धा के नाती हुकुम सिंह अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ दिल्ली में एम्स अधीक्षक की उपस्थिति में नागौर लोकसभा क्षेत्र से नामांकन पत्र पर नाथूराम मिर्धा के हस्ताक्षर करवाकर लाए थे। चुनाव आयोग के नियमानुसार प्रस्तावकों की ओर से जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष मिर्धा का नामांकन-पत्र प्रस्तुत किया गया।
मतदाताओं पर जादूई असर
अस्पताल में भर्ती होने के कारण मिर्धा का निर्वाचन क्षेत्र में आना संभव नहीं था। लिहाजा, उनकी ओर से मतदाताओं के बीच एक पम्फलेट वितरित किया गया। इसमें मार्मिक शब्दों में मतदाताओं से यह अपील की गई थी कि वे थेपड़ी के रूप में ही सही चुनाव में वोट देकर उन्हें विजयी बनाएं। मारवाड़ में व्यक्ति के निधन पर श्मशान में उपस्थित लोग चिता में सूखे गोधन का टुकड़ा अर्पित कर दिवंगत के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं, जिसे थेपड़ी कहा जाता है। मिर्धा की इस अपील का मतदाताओं पर जादुई असर हुआ। उन्हें 2,87,594 और भाजपा के हरीश चंद कुमावत को 1,28,560 वोट मिले और वह 1,59,034 मतों से यह चुनाव जीत गए। 11वीं लोकसभा का कार्यकाल 15 मई 1996 से 4 दिसंबर 1997 तक था। चुनाव जीतने के बाद नाथूराम मिर्धा का 30 अगस्त 1996 को निधन हो गया।
अस्पताल में भर्ती होने के कारण मिर्धा का निर्वाचन क्षेत्र में आना संभव नहीं था। लिहाजा, उनकी ओर से मतदाताओं के बीच एक पम्फलेट वितरित किया गया। इसमें मार्मिक शब्दों में मतदाताओं से यह अपील की गई थी कि वे थेपड़ी के रूप में ही सही चुनाव में वोट देकर उन्हें विजयी बनाएं। मारवाड़ में व्यक्ति के निधन पर श्मशान में उपस्थित लोग चिता में सूखे गोधन का टुकड़ा अर्पित कर दिवंगत के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं, जिसे थेपड़ी कहा जाता है। मिर्धा की इस अपील का मतदाताओं पर जादुई असर हुआ। उन्हें 2,87,594 और भाजपा के हरीश चंद कुमावत को 1,28,560 वोट मिले और वह 1,59,034 मतों से यह चुनाव जीत गए। 11वीं लोकसभा का कार्यकाल 15 मई 1996 से 4 दिसंबर 1997 तक था। चुनाव जीतने के बाद नाथूराम मिर्धा का 30 अगस्त 1996 को निधन हो गया।
पहली बार चुनाव लड़ा और जीते (Nathuram Mirdha History)
1952 से लेकर 1967 तक के आम चुनाव में लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ संपन्न हुए थे। चौथी लोकसभा का कार्यकाल 1967 से 1972 तक था। इस दौरान 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ और तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर दिसंबर 1970 में लोकसभा भंग की गई तथा 1971 में पहली बार मध्यावधि चुनाव हुए। नाथूराम मिर्धा ने पहली बार पांचवीं लोकसभा के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के नंद कुमार को 1,00,895 मतों से पराजित किया। संयोगवश पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल 1976 में समाप्त होना था, जून 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद संविधान संशोधन करके लोकसभा की अवधि बढ़ाई गई और जनवरी 1977 में छठवीं लोकसभा के चुनाव में नाथूराम मिर्धा ने जनता पार्टी के किशनलाल शाह को 20,000 मतों से पराजित कर राजस्थान में केवल नागौर सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा।
1952 से लेकर 1967 तक के आम चुनाव में लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ संपन्न हुए थे। चौथी लोकसभा का कार्यकाल 1967 से 1972 तक था। इस दौरान 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ और तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर दिसंबर 1970 में लोकसभा भंग की गई तथा 1971 में पहली बार मध्यावधि चुनाव हुए। नाथूराम मिर्धा ने पहली बार पांचवीं लोकसभा के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के नंद कुमार को 1,00,895 मतों से पराजित किया। संयोगवश पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल 1976 में समाप्त होना था, जून 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद संविधान संशोधन करके लोकसभा की अवधि बढ़ाई गई और जनवरी 1977 में छठवीं लोकसभा के चुनाव में नाथूराम मिर्धा ने जनता पार्टी के किशनलाल शाह को 20,000 मतों से पराजित कर राजस्थान में केवल नागौर सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा।
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