Linseed cultivation : अपनी आमदनी बढ़ाना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती है। सरकार भी किसानों की आमदनी ( Farmers Income ) बढ़ाने के लिए कोशिश कर रही है। इन कोशिशों के बीच किसान औषधीय पौधों ( Medicinal Plants Farming ) की खेती करके अच्छी आमदनी कर सकते हैं। इन औषधीय महत्व की उपजों में एक नाम आता है अलसी का। किसान अलसी की खेती करके असिंचित क्षेत्र में भी इस फसल की अच्छा उत्पादन कर सकते हैं। अलसी एक तिलहनी फसल है। बिना खास मेहनत और बिना ज्यादा खर्च के अलसी की खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। अलसी की खेती की खास बात यह है कि असिंचित क्षेत्र में भी इसका बेहतर उत्पादन होता है। इतना ही नहीं, इस फसल को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। अलसी में ओमेगा-थ्री पाया जाता है। इस कारण इस उपज का औषधीय महत्व है। अलसी का खासतौर पर उपयोग दवाईयों के साथ ही तैलीय उत्पाद बनाने में किया जाता है। सामान्यतया अलसी की बुआर्ई अक्टूबर-नवम्बर के महीने में की जाती है। जिन इलाकों में पानी की कमी है, वहां भी सफलतापूर्वक अलसी की खेती की जा सकती है।
भारत में होती है अच्छी पैदावार
आपको बता दें कि देशभर में करीब 2.96 लाख हेक्टेयर एरिया में अलसी की खेती होती है। दुनिया में उत्पादित होने वाली कुल अलसी की उपज का करीब 15 फीसदी हिस्सा भारत में उत्पादित होता है। आपको बता दें कि भारत में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान और उड़ीसा में अलसी की अच्छी खासी खेती की जाती है। देश में अलसी की कुल खेती का 50 से 60 फीसदी हिस्सा अकेले उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश राज्यों में उत्पादित होता है।
इस तरह बेहतर उत्पादन संभव
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि एक हेक्टेयर एरिया में असली की खेती के लिए करीब 30 किलो तक बीज लगता है। कृषि विशेषज्ञ किसानों को यह सलाह देते हैं कि अलसी की बुवाई के समय खेत में अगर कतारों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच दूरी चार से पांच सेंटीमीटर रखी जाए तो किसान अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। असली की खेती की एक और खास बात यह है कि इस फसल को जंगली जानवर भी खराब नहीं करते हैं।
असिंचित क्षेत्रों में अच्छा उत्पादन
आपको बता दें कि पानी की कमी के चलते किसानों का रूझान अलसी की खेेती की ओर बढ़ रहा है। औषधीय महत्व के कारण बाजार में अलसी की मांग के चलते भी किसान इसकी खेती करना पसंद करते हैं। असली की कुछ महत्वपूर्ण किस्मों की बात करें तो इनमें पदमनीय, शारदा, जेएलएस-73 जेएलएस-66, इंद्रा अलसी-32, कार्तिकेय, दीपिका, जेएलएस-67, जेएलएस-95 प्रमुख हैं। ये किस्म असिंचित क्षेत्रों में भी किसानों को बेहतर उपज देती हैं।