जयपुर

KOJAGARI PURNIMA 2020 PUJA VIDHI रात में छोटी सी इस पूजा से सुख—संपत्ति में होती है वृद्धि

इस बार 30 अक्टूबर को शाम 5.45 बजे पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगी। रातभर पूर्णिमा तिथि रहेगी। इसलिए शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा 30 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। 31 अक्टूबर को रात लगभग 8 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। इस दिन पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा और स्नान, दान भी किया जाएगा।

जयपुरOct 30, 2020 / 06:37 pm

deepak deewan

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जयपुर. अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मीजी और चंद्रमा की पूजा की जाती है। रात में चन्द्रमा की रोशनी में चावल की खीर रखी जाती है जिसे दूसरे दिन प्रसाद के रूप में खाया जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि इस बार 30 अक्टूबर को शाम 5.45 बजे पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगी। रातभर पूर्णिमा तिथि रहेगी। इसलिए शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा 30 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। 31 अक्टूबर को रात लगभग 8 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। इस दिन पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा और स्नान, दान भी किया जाएगा।
माना जाता है कि यह दिन श्रीकृष्ण के महारास का दिन है। इस संबंध में देवी भागवत महापुराण में विस्तार से बताया गया है। शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी प्राकट्य दिवस कहा जाता है। इसलिए शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मीजी की विशेष पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार इसे कमला पूर्णिमा भी कहा गया है जिसमें कौमुदी व्रत रखा जाता है।
आश्विन पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी धरती का भ्रमण करने आती हैं। वे आवाज लगाती हैं— कौन जाग रहा है! जिस घर में रोशनी और कोई जागनेवाला मिलता है उसे वे अपना स्थायी निवास बना लेती हैं। इसी वजह से आश्विन पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहा गया है। इस रात लक्ष्मी पूजा करने और जागरण करने का फल समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं के साथ उपस्थित रहता है। दरअसल शरद पूर्णिमा पर्व आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है जब चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में रहता है। ज्योतिषीय और धार्मिक ग्रंथों में इस नक्षत्र के स्वामी अश्विनी कुमार को बताया गया है।
अश्विनी कुमार से ही देवी—देवताओं को सोम अर्थात अमृत मिलता है। इनके ही नक्षत्र में जब चंद्रमा 16 कलाओं के साथ मौजूद रहता है तो वह अमृतमयी हो जाता है। रात में चंद्र पूजा कर दूध-चावल से बनी खीर चांदी के बर्तन में चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है। इससे चंद्र दोष भी समाप्त होता है और सुख—संपत्ति प्राप्त होती है।

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