जयपुर. राजधानी को एम्स मिलने पर शहर के 12 बड़े सरकारी अस्पतालों को राहत मिलेगी। अभी एसएमएस मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध सवाई मानसिंह अस्पताल, जेकेलोन, जनाना, महिला, गणगौरी, कांवटिया, बनीपार्क, सेठी कॉलोनी, मनोरोग और श्वांस रोग टीबी अस्पताल में रोजाना करीब 30 हजार मरीज प्रतिदिन आउटडोर में आ रहे हैं। आरयूएचएस के संघटक कॉलेज के आरयूएचएस और जयपुरिया अस्पताल पर भी मरीजों का दबाव है। राज्य सरकार के अधीन इन सभी अस्पतालों में चिकित्सकों और अन्य स्टाफ का मरीजों की तुलना में अभाव है। इनमें जयपुरिया, गणगौरी और आरयूएचएस को तो एसएमएस के विकल्प के तौर पर देखा गया, लेकिन ये उम्मीदें आज तक पूरी नहीं हो पाईं।
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि एम्स आने पर केन्द्र सरकार से यहां डॉक्टर और स्टाफ लगाए जाएंगे। इससे राज्य सरकार के अधीन अभी चल रहे बड़े अस्पतालों से भी मरीजों का दबाव कुछ हद तक कम हो सकेगा। गंभीर मरीजों को आसानी से रैफर किया जा सकेगा।
एसएमएस के अलावा दूसरा सहारा नहीं राजधानी में डेढ़ दशक के दौरान निजी व सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का तेजी से विकास हुआ है। लेकिन इसके बावजूद कोई भी अस्पताल एसएमएस का संपूर्ण विकल्प नहीं बन पाया। इसका मुख्य कारण सरकार के पास डॉक्टरों की कमी रही। मानसरोवर में शिप्रा पथ पर बनाए गए मानस आरोग्य सदन को निजी सहभागिता से चलाना पड़ा। इससे पहले सीकर रोड पर बनाए गए ट्रोमा सेंटर को भी निजी क्षेत्र में दे दिया गया। प्रताप नगर में आरयूएचएस अस्पताल भी आज तक पर्याप्त डॉक्टर नहीं होने के कारण एसएमएस की तरह विकसित नहीं हो पाया है। लेकिन एम्स जयपुर को मिलता है तो शहर ही नहीं, राजस्थान के लोगों को एसएमएस का मजबूत विकल्प मिल सकता है।
1956 में पहला एम्स देश में पिछले 11 वर्ष के दौरान एम्स की संख्या तेजी से बढ़ी है। 1956 में देश का सबसे पहला एम्स नई दिल्ली में शुरू हुआ। इसके बाद वर्ष में 2012 में 7 नए एम्स भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर, ऋषिकेश और रायबरेली को मिले। वर्ष 2018 में आंध्रप्रदेश के मंगलगिरी, 2019 में गोरखपुर, तेलंगाना के बीबीनगर, भंटिडा, पश्चिम बंगाल, देवघर झारखंड में शुरू हुए।