इस साल 2018 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के 11वें संस्करण में पांच दिनों तक चले कार्यक्रम के दौरान रिकाॅर्ड 5 लाख दर्शकों ने शिरकत की। जो पिछले साल के फेस्टिवल में आए दशर्कों की संख्या से 23 फीसदी ज्यादा है। फेस्टिवल के आखिरी दिन आयोजित सत्रों में कई विविध पृष्ठभूमि के वक्ताओं ने शिरकत की, जिनमें नए उपन्यासकारों से लेकर विषेशज्ञ के अलावा अपने क्षेत्र के दिग्गज जानकार शामिल रहें।
60 फीसदी आबादी की उम्र 25 साल से कम- बता दें कि फेस्टिवल के इस संस्करण में पहुंचने वाली 60 फीसदी आबादी की उम्र 25 साल से कम रही। तो वहीं लिटरेचर फेस्टिवल ने सामाजिक न्याय, समानता और पर्यावरण जवाबदेही तय करने की उत्सुक युवा पीढ़ी का दिल जीतने के साथ उनके दिलो-दिमाग पर अपनी गहरी छाप छोड़ी गई। दिन की शुरूआत द फिक्षनल लीप सत्र के साथ हुई। जिसमें कन्नड़ के जाने माने लेखक विवेक शंभाग ने लेखक किरण नागरकर से लेखनी की सफलता को सवाल पूछा। जिसके जवाब में नागरकर ने कहा कि उनका उपन्यास गाॅड्स लिटिल सोल्जर एक ऐसा उदाहरण है, जिसमें वह अपना संदेश सही ढंग से पाठकों तक नहीं पहुंचा सके थे। उनका कहना कि पाठकों तक किताब का सार ’’दुनिया में सिर्फ एक ही भगवान है और वह है ज़िंदगी, बाकी सब गैर-प्रासंगिक है’’ पहुंचाने में असफल रहे।
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साउथ एशियन लिटरेचर के लिए डीएससी प्राइज के विजेता और मैन बुकर प्राइज के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए जीत थाइल ने अपनी नई किताब द बुक आॅफ चाॅकलेट सेंट्स के बारे में संपूर्णा चटर्जी से बातचीत की। जबकि डोनाल्ड ट्रंप विश्व के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति कैसे बन गए? ओनली इन अमरीका के लेखक एवं डाॅक्यूमेंटरी द ट्रंप्सः फ्राॅम इमीग्रेंट टू प्रेज़ीडेंट के निर्माता ब्रिटिष पत्रकार मैट फ्रेई ने ट्रंप घटनाक्रम और अमेरिकी व वैश्विक राजनीति पर इसके असर के बारे में चर्चा की। इन देशों के हालात पर चर्चा- इसके अलावा सीरिया, फिलिस्तीन और अरब देशों के अन्य हिस्सों में जो मुश्किल हालात बने हैं उनके बीच अरब संस्कृति का जश्न मनाने वाला सत्र बेहद प्रांसगिक था। तो वहीं सत्र में चर्चा के लिए फेस्टिवल के पैनल में सीरियाई, फिलिस्तीनी, लेबनानी और इज़रायली मूल के लेखक शामिल थे। जिन्होंने अपनी बाते रखी। जहां उन्होंने कहा कि साहित्य का असली प्रभाव तब दिखता है जब वह अनकही बातों को आवाज देता है। राजस्थालीः धरती की कूंख में प्रसिद्ध राजस्थानी लेखक अभिमन्यु सिंह अरहा, बुलाकी शर्मा और रीना मिनारिया ने 16वीं सदी में भारत की सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक रही भाषा की धरोहर पर अरविंद सिंह आष्या से बातचीत की।
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