भारतीय रेलवे ने यात्रियों की सुविधा के लिए जयपुर-गोमती नगर-जयपुर स्पेशल रेलसेवा को एलएचबी रैक से संचालित करेगी। उत्तर पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी कैप्टन शशि किरण के अनुसार गाड़ी संख्या 09715/09716 जयपुर-गोमती नगर- जयपुर स्पेशल में जयपुर से 12 नवंबर और गोमती नगर से 13 नवंबर से एलएचबी कोच से संचालित होगी।
क्या हैं एलएचबी कोच के फायदे
रिसर्च डिजाइन्स एंड स्टैंडड्र्स ऑर्गेनाइजेशन ने जर्मन तकनीक पर ऐसे कोच बनाए, जो आपस में टकरा न सकें। इन्हें लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच कहा गया। आपस में टकराव रोधी कोच का आलमनगर में सफल परीक्षण किया गया था। परीक्षण में जो खामियां सामने आई थीं, उसके बाद डिजाइन में सुधार भी किया था।
रिसर्च डिजाइन्स एंड स्टैंडड्र्स ऑर्गेनाइजेशन ने जर्मन तकनीक पर ऐसे कोच बनाए, जो आपस में टकरा न सकें। इन्हें लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच कहा गया। आपस में टकराव रोधी कोच का आलमनगर में सफल परीक्षण किया गया था। परीक्षण में जो खामियां सामने आई थीं, उसके बाद डिजाइन में सुधार भी किया था।
एक कोच में 80 यात्री
30 टायर वाले एलएचबी कोच में 80 लोग यात्रा कर सकते हैं। आईसीएफ वाले कोच में 72 यात्री ही होते हैं। एलएचबी कोच पारंपरिक कोच की तुलना में 1.5 मीटर लंबे होते हैं। इसके कारण यात्री वहन क्षमता में वृद्धि हो जाती है। हादसे की स्थिति में एलएचबी कोच पारंपरिक कोच के मुकाबले कम क्षतिग्रस्त होते हैं।
30 टायर वाले एलएचबी कोच में 80 लोग यात्रा कर सकते हैं। आईसीएफ वाले कोच में 72 यात्री ही होते हैं। एलएचबी कोच पारंपरिक कोच की तुलना में 1.5 मीटर लंबे होते हैं। इसके कारण यात्री वहन क्षमता में वृद्धि हो जाती है। हादसे की स्थिति में एलएचबी कोच पारंपरिक कोच के मुकाबले कम क्षतिग्रस्त होते हैं।
एक-दूसरे पर नहीं चढ़ते कोच
ट्रेन में एलएचबी कोच और सीबीसी कपलिंग होने से एक-दूसरे पर चढऩे की गुंजाइश नहीं रहती। सीबीसी कपलिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अगर ट्रेन डिरेल भी होती है तो कपलिंग के टूटने की आशंका नहीं होती और एक-दूसरे पर चढऩे की आशंका लगभग समाप्त हो जाती है।
ट्रेन में एलएचबी कोच और सीबीसी कपलिंग होने से एक-दूसरे पर चढऩे की गुंजाइश नहीं रहती। सीबीसी कपलिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अगर ट्रेन डिरेल भी होती है तो कपलिंग के टूटने की आशंका नहीं होती और एक-दूसरे पर चढऩे की आशंका लगभग समाप्त हो जाती है।
कम आती है आवाज
एलएचबी कोच इन कोच में बेहतर आब्जर्वर का उपयोग होने से आवाज भी कम आती है। ट्रेन के अंदर यात्रियों को ट्रेन के चलने की आवाज बहुत धीमी समझ आती है। सेल्फ लाइफ भी पारंपरिक कोच के मुकाबले ज्यादा होती है। हालांकि कोच की लंबाई ज्यादा होने के कारण पारंपरिक ट्रेनों के मुकाबले इनमें कम डिब्बे जोड़े जाते हैं। प्लेटफॉर्म की पर्याप्त लंबाई नहीं होने के कारण ऐसा किया जाता है।
एलएचबी कोच इन कोच में बेहतर आब्जर्वर का उपयोग होने से आवाज भी कम आती है। ट्रेन के अंदर यात्रियों को ट्रेन के चलने की आवाज बहुत धीमी समझ आती है। सेल्फ लाइफ भी पारंपरिक कोच के मुकाबले ज्यादा होती है। हालांकि कोच की लंबाई ज्यादा होने के कारण पारंपरिक ट्रेनों के मुकाबले इनमें कम डिब्बे जोड़े जाते हैं। प्लेटफॉर्म की पर्याप्त लंबाई नहीं होने के कारण ऐसा किया जाता है।