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दक्षिणमुखी शंखमंदिर में दक्षिणमुखी शंख भी है, जो कि बहुत कम मंदिरों में देखने को मिलता है। जयपुर के पूर्व राजघराने के पं. रामप्रसाद के ब्रज भाषा में रचित तीन छंदों को संगरमरमर के फलक पर उत्कीर्ण करवाकर मंदिर के गर्भगृह में लगाया गया। सांधार शैली में बने मंदिर को रियासतकाल से ही सुरक्षा प्रदान की गई थी। वर्तमान में भी यहां जवान पहरेदारी करते दिखे। इस मंदिर को बनाने में 24 हजार की कुल लागत आई थी। इस मंदिर का निर्माण 109 वर्ष पूर्व 1914 में हुआ था।
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चांदी के सिंहासन पर विराजमान हैं माता, संगमरमर-अष्टधातु की प्रतिमावर्ष 1914 में बैशाख मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को बनकर तैयार हुए इस मंदिर की लागत करीब 24,000 रु. आई थी। संगमरमर और करौली से मंगाए पत्थरों से बनाए मंदिर में मां गंगा की संगमरमर से निर्मित प्रतिमा को चांदी के पाट (सिंहासन पर) विराजमान किया गया। निम्बार्क सम्प्रदाय के अनुसार यहां प्रतिदिन सेवा-पूजा होती है। दूसरे सिंहासन पर रखे स्वर्ण कलश में गंगोत्री से मंगाया गंगाजल भरा हुआ है, जिसे कि मां यमुना का स्वरूप माना जाता है। देवस्थान विभाग की ओर से हरिद्वार से मंगाए गंगाजल को इस कलश में मिश्रित कर माता का अभिषेक किया जाता है। जनश्रुति यह भी है कि महाराजा माधोसिंह के दो जुड़वां पुत्र गंगासिंह और गोपाल सिंह की अल्पायु में मृत्यु हो गई थी। इनकी स्मृति में ही मंदिर का नाम रखा गया। राजकीय श्रेणी के देवस्थान विभाग के अधीन इस मंदिर में मां गंगा की अष्टधातु निर्मित प्रतिमा भी है।
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यह मंदिर भी प्राचीनगंगा मंदिर खंडेलवाल वैश्य जाति मंदिर समिति के तत्वावधान में स्टेशन रोड स्थित गंगा माता मंदिर भी 100 वर्ष से अधिक पुराना है। यहां मां गंगा के साथ भगवान सालिगराम और हनुमान जी भी विराजमान हैं। पूर्व मंत्री रामकिशोर नाटाणी ने बताया कि वर्षभर भक्तों की आवाजाही के साथ ही गंगादशमी पर मेला भरता है।