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अनूठा था जयपुर संसदीय क्षेत्र के लिए पहला Lok Sabha Election, जानिए कौन जीता था कांटे की टक्कर में

Lok Sabha Election 2019 : जयपुर संसदीय क्षेत्र के लिए पहला लोकसभा चुनाव कई मायने में अनूठा था।

जयपुरApr 14, 2019 / 08:58 am

Santosh Trivedi

first Lok Sabha Election

Nagrik ekata party leader shamim Khan filed nomination in Lucknow

शैलेन्द्र अग्रवाल
जयुपर। Lok Sabha Election 2019 : जयपुर संसदीय क्षेत्र के लिए पहला लोकसभा चुनाव कई मायने में अनूठा था। कानून क्षेत्र के 2 दिग्गजों के बीच सीधी भिड़ंत जो हो रही थी। वर्ष 1952 में पहले लोकसभा चुनाव के समय न आज जैसी मशीनरी थी, न दौड़-भाग के लिए आराम दायक गाडिय़ा।
बैलगाड़ी पर या पैदल ही प्रचार के लिए निकलना पड़ता था। एक प्रत्याशी का पूरा चुनाव खर्च 25 से 45 हजार रुपए होता था। प्रत्याशियों में न तो पहले कटुता होती थी, न नतीजे के बाद। पहले चुनाव में जीतने वाले Daulat Ram Bhandari , दूसरे नम्बर पर रहे चिरंजीलाल अग्रवाल के पुत्रों को आज भी तब के अनुभव याद हैं।
Congress के टिकट पर दौलतमल भंडारी जयपुर के पहले सांसद चुने गए। वह 1955 में राजस्थान हाईकोर्ट में जज बने तो 1956 के उपचुनाव में कांग्रेस के ही बंशीलाल लुहाडिय़ा जीते। भंडारी मुख्य न्यायाधीश भी रहे। उन्होंने 1942 में जयपुर में आजाद मोर्चा बनाया और सत्याग्रह के रास्ते पर निकल पड़े।
लोकसभा के पहले चुनाव में Jaipur में दूसरे नम्बर पर रहे चिरंजीलाल अग्रवाल का नाम उस दौर के बड़े वकीलों में लिया जाता है। वह स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार थे। उनके लिए तब चुनावी सफर नया था लेकिन वकालत से मिली हिम्मत के दम पर मजबूत खिलाड़ी की तरह चुनाव मैदान में उतरे।
10 प्रतिशत से अधिक वोट 2 को ही मिले
नाम———-पार्टी———-मत प्रतिशत
दौलतमल भंडारी–कांग्रेस———41.79
चिरंजीलाल——निर्दलीय——-30.22
सरदार मो. खान–राम राज्य परिषद-9.19
आचार्य नंदलाल—निर्दलीय——-7.82
राधावल्लभ——-सीपीआइ——-4.61
शांतिभाई जौहरी—प्रजा सोसलिस्ट पार्टी-3.46
राधेश्याम——-निर्दलीय———-2.90

पहला लोकसभा चुनाव
– 27 मार्च 1952 को हुआ था मतदान, तब कुल 397855 थे मतदाता
– 29.93 प्रतिशत रहा मतदान
– 13784 वोट से हराया कांग्रेस के दौलतमल ने चिरंजीलाल को
– 07 प्रत्याशियों ने चुनाव में भाग लिया
– 01 नाम और 3 धर्म से नाता, सरदार मोहम्मद खान ने राम राज्य परिषद से चुनाव लड़ा
तब कम्प्यूटर नहीं था। मतदाता सूची एक ही मिलती थी। उसकी कार्बन कॉपियां तैयार करने में महीनाभर लग गया था। दो-तीन के समूह में जाते, गांव के मुखिया से मिलते। उसी को सभी पर्चियां दे आते थे। सड़कें नहीं थीं इसलिए लोग इसी की मांग ज्यादा करते थे। स्कूल-अस्पताल भी नहीं थे। सिर्फ बैलगाड़ी और ऊंटगाड़ी चलती थी। पिताजी और चिरंजीलालजी दोनों वकालत में थे। चुनाव में आमने-सामने थे पर आपस में भाईचारा था।
धीरेन्द्र सिंह भंडारी (84), दौलतमल भंडारी के बड़े पुत्र
तब चुनाव कार्य के लिए आज जैसी मशीनरी नहीं थी। मैं तब लॉ की पढ़ाई कर रहा था। पिताजी के चैम्बर में उनके 4-5 जूनियर थे और वे ही चुनाव का काम संभालते थे। क्षेत्र बहुत फैला हुआ था, बहुत मेहनत करनी पड़ती थी। चुनाव के लिए हमारे पास अनुभव नहीं था, आंकलन आसान नहीं होता था। शहर में कई समस्याएं थीं और हमारे पास कोई संगठन नहीं था। हालांकि शुभचिन्तक चुनाव संबंधी काम में बहुत मदद करते थे। ज्यादा खर्च नहीं होता था। यह पैसा भी मित्र, शुभचिंतक और करीबी लोगों से ही लेते थे।
एससी अग्रवाल (86), चिरंजीलाल अग्रवाल के पुत्र

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