नीमच के करोड़पति व्यवसायी सुमित राठौड़ और उनकी इंजीनियर पत्नी चित्तौडग़ढ़ की कपासन निवासी अनामिका चंडालिया के वैराग्य पथ का वरण करने के बाद दोनों की दीक्षा 23 सितम्बर को तय थी। लेकिन दो साल 10 माह की बेटी की सार-संभाल पर खड़े हुए प्रश्न और कानूनी प्रक्रिया के कारण प्रशासन की कड़ी आपत्ति के बीच सुमित ने ही विधि-विधान से दीक्षा ग्रहण की। तब आयोजकों ने बताया था कि बेटी के निर्वाह की कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही मुमुक्षु अनामिका जैन भागवती दीक्षा ग्रहण करेगी। इस संबंध में बताया गया कि यह दीक्षा कानून प्रक्रिया पूरी होने के बाद दिलाई गई। इस मौके पर राठौड़ परिवार के सदस्य और रिश्तेदार समेत अन्य कई लोग मौजूद थे। जानकारी के अनुसार सूरत में सुबह 7 बजकर 15 मिनट पर मुमुक्षु अनामिका ने जैन भागवती दीक्षा लेकर साध्वी वेश अंगीकार किया।
देशभर में चर्चा का विषय
करोड़ों की सम्पति और दो साल 10 माह की बेटी को त्याग कर सुमित और अनामिका के दीक्षा ग्रहण करने के निर्णय पर देशभर में चर्चा छिड़ गई। नीमच के सामाजिक कार्यकर्ता कपिल शुक्ला और जयपुर की डॉ. रचना नाहटा ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में दीक्षा रोकने के लिए याचिका दायर की थी। अहमदाबाद बाल आयोग की जागृति पांडे ने भी दीक्षा पर आपत्ति उठाई, जिसके कारण पिछले शनिवार को पति सुमित के साथ पत्नी अनामिका की दीक्षा नहीं हो पाई थी। आचार्य रामलाल महाराज ने उस दौरान कहा था कि कानूनी अड़चनें दूर होने पर यह दीक्षा सम्पन्न की जाएगी।
कानूनी अड़चनें कीं दूर
संघ के राष्ट्रीय पदाधिकारी संदीप खाबिया के मुताबिक सोमवार को यह दीक्षा पूर्ण हो गई। आचार्य रामलाल महाराज ने मुमुक्षु बहन अनामिका को जैन भगवती दीक्षा दी। मामले में आ रही तमाम कानूनी रुकावटें दूर कर ली गई हैं। जैन संत उदय मुनि ने बताया कि कोई आयोग, सरकार और अधिकारी अल्पसंख्यक धर्म समूह के धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
मुमुक्षु अनामिका ने जैन भागवती दीक्षा ग्रहण करने से पहले अपने परिजनों के साथ मिलकर बेटी इभ्या की सार-संभाल के लिए दत्तक रूप में देने की कानूनी प्रक्रिया पूरी की। बताया गया है कि इभ्या को अनामिका के भाई-भाभी ने गोद लिया है। उनकी कोई संतान नहीं है। इभ्या को दत्तक दिए जाने के सभी प्रमाण और दस्तावेज भी प्रस्तुत किए बताए। मुमुक्षु ने कहा कि मेरा पीहर परिवार और ससुराल परिवार, दोनों ही करोड़पति हैं। दोनों परिवारों में सदस्य और रिश्तेदार बड़ी संख्या में हैं, इसलिए भविष्य में इभ्या के लालन-पालन और जिम्मेदारी निर्वहन में कोई दिक्कत नहीं आएगी।