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JLF-2025:‘अमरीका इतना ही उदार है, तो फिलिस्तीनियों को अपने देश में क्यों नहीं बसाता’- इजरायली पत्रकार गिदोन लेवी

Jaipur Literature Festival 2025: अमरीका में भारत के राजदूत रहे नवतेज सरना ने जेएलएफ के एक सेशन में उनसे बातचीत की।

जयपुरJan 31, 2025 / 08:44 am

Alfiya Khan

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जयपुर। गिदोन लेवी एक इजरायली पत्रकार और लेखक हैं। वे अक्सर फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर इजरायली कब्जे पर लेख लिखते हैं। इजरायली कब्जे वाले क्षेत्रों में मानवाधिकारों पर उनके लेखों के लिए उन्हें पुरस्कार मिल चुके हैं। अमरीका में भारत के राजदूत रहे नवतेज सरना ने जेएलएफ के एक सेशन में उनसे बातचीत की।
बातचीत का केंद्र इजरायल पर सात अक्टूबर 2023 को हुआ आतंकी हमला और उसके बाद के हालात थे। इजरायल और फिलिस्तीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष में नए साल की शुरुआत एक उम्मीद की किरण के साथ हुई है। दोनों पक्षों के कैदियों की अदला-बदली हो रही है।
लेवी ने कहा, 7 अक्टूबर का दिन भयानक था। उसके बाद जो कुछ भी हुआ, वह इजराइल द्वारा उसके बाद से किए गए कार्यों को उचित नहीं ठहराता। इजराइल केवल एक ही स्वर में बोल रहा है और किसी अन्य स्वर को सुनने के लिए तैयार नहीं है…। अगर इजरायल ने फिलिस्तीनियों के साथ अलग तरह से व्यवहार किया होता तो आज हालात अलग तरह के होते।

इजरायल सरकार युद्धविराम के दूसरे और तीसरे चरण में जाने के पक्ष में नहीं है। उनका मानना है कि वर्तमान सरकार गाजा में युद्ध और सैन्य उपस्थिति को समाप्त नहीं करना चाहती, जिससे संघर्ष का समाधान मुश्किल होता जा रहा है।
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अमरीका की भूमिका

अमरीका के हाल ही में चुने गए राष्ट्रपति के बारे में चर्चा करते हुए, लेवी ने कहा, शुरुआत में उनसे शांति की उम्मीद की गई थी, लेकिन जल्द ही उनकी नीतियों ने विवाद खड़ा कर दिया। विशेष रूप से, राष्ट्रपति द्वारा 15 से 20 लाख फिलिस्तीनियों को मिस्र और जॉर्डन में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया गया, जिसे आलोचना का सामना करना पड़ा।
इस प्रस्ताव को ‘अमानवीय’ करार देते हुए कहा कि यदि अमरीका इतना ही उदार है, तो वह इन फिलिस्तीनियों को अपने देश में क्यों नहीं बसाता? लोगों को उनकी जड़ों से उखाड़कर किसी और जगह बसाने की मानसिकता बेहद क्रूर है। उन्होंने कहा, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में हालांकी युद्धविराम एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह केवल पहली सीढ़ी है।
आगे की प्रक्रिया जटिल है, और इसमें इजरायल, फिलिस्तीन तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका अहम होगी। यह देखना बाकी है कि क्या यह युद्धविराम स्थायी शांति में तब्दील हो पाएगा या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी विराम बनकर रह जाएगा।
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