इंजेक्शन लगाने के बाद डॉक्टर प्रियांशु माथुर ने बताया कि अब बच्चे को 24 घंटे ऑब्जर्वेशन में रखेंगे। इसके बाद दो महीने तक बच्चे के दवाईयां चलेगी। फिर बच्चा आम लोगों की तरह जीवन यापन कर सकेगा।
बच्चे के परिजनों ने सभी का सहयोग करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। पत्रिका की ओर से हृदयांश को बचाने के लिए मुहिम चलाई गई थी। इसके बाद लोग क्राउड फंडिंग के लिए आगे आए, जिससे हृदयांश का इलाज संभव हुआ। हृदयांश की मदद के लिए आमजन के साथ पुलिस विभाग भी आगे आया है।
बता दें कि इंजेक्शन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी ने भी हृदयांश के इलाज में काफी मदद की है। उन्होंने इंजेक्शन की 17.5 करोड़ रुपए की राशि को चार किश्तों में जमा कराने की छूट दी है। अब तक क्राउड फंडिंग से जमा हुए 9 करोड़ रुपए से इंजेक्शन की पहली किश्त जमा करा दी है। बाकी राशि को तीन किश्तों में एक साल में जमा कराया जाएगा।
दुर्लभ बीमारी है एसएमए.. स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी एक जेनेटिक बीमारी है। इसके कारण हृदयांश का कमर से नीचे का हिस्सा बिल्कुल भी काम नहीं करता है। इस बीमारी का इलाज 24 महीने की उम्र तक ही किया जाता है। इस बीमारी का समय पर इलाज नहीं हाेने पर यह पूरे शरीर में फैल जाती है। फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं। इससे जान का भी खतरा हाेता है। इसके लिए विदेश से विशेष प्रकार के इंजेक्शन की जरूरत होती है।