जयपुर

आज भी जिंदा है बॉर्डर फिल्म का असली हीरो भैरोसिंह, सेना मेडल विजेता आज भी जी रहा है, अपनी ऐसी जिंदगी

1997 में रिलीज हुई बॉर्डर फिल्म में भैरोंसिंह राठौड़ को बताया था शहीद लेकिन शेरगढ़ के सोलंकियातला गांव में गुमनामी जिंदगी जी रहा है वतन का जाबांज।

जयपुरSep 07, 2022 / 11:31 am

Santosh Trivedi

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दिलावर सिंह राठौड़

भारत पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध पर 1997 में बनी बॉलीवुड फिल्म बॉर्डर में आपने सुनील शेट्टी के रोल में भैरोंसिंह के शहीद होने का सीन देख रोमांचित हुए होंगे। लेकिन आप यह जानकर अचंभित हो जाएंगे कि बॉर्डर फिल्म का यह रियल हीरो भैरोंसिंह अपनी ही सरजमीं पर गुमनामी की जिंदगी जी रहा है। वीर सूरमाओं की धरा शेरगढ़ के सोलंकियातला गांव में जन्मे भैरोंसिंह राठौड़ बीएसएफ की 1971 में जैसलमेर के लोंगेवाला पोस्ट पर 14 बटालियन में तैनात थे। जहां पर भैरोंसिंह ने अपने असाधारण शौर्य व वीरता का परिचय देते हुए पाक सैनिकों के दांत खट्टे किए थे।

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भारत-पाक सीमा पर लोंगेवाला पोस्ट पर वे मेजर कुलदीपसिंह की 120 सैनिकों की कंपनी के साथ डटकर सामना करते हुए पाक के टैंक ध्वस्त करते हुए दुश्मन सैनिकों को मार गिराया था। शेरगढ़ के सूरमा भैरोसिंह ने एमएफजी से करीब 30 पाकिस्तानी दुश्मनों को ढेर किया था। शौर्यवीर भैरोंसिंह की वीरता व पराक्रम के चलते सन 1997 में रिलीज हुई बॉर्डर फिल्म में सुनील शेट्टी ने राठौड़ का रोल अदा किया था। फिल्म में भैरोंसिंह को शहीद बताया गया था लेकिन असल जिंदगी में फिल्म के रियल हीरो भैरोंसिंह आज भी पूरे जज्बे के साथ स्वस्थ्य हैं।

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बरकतुल्लाह खान ने किया था सम्मानित
भैरोंसिंह ने बताया कि बॉर्डर फिल्म में उनके रोल को दिखाना एक गर्व की बात है। यह युवाओं में जोश भरने जैसा है। लेकिन शहीद के रूप में फिल्माना गलत है। 1971 के युद्ध मे उनके पराक्रम पर राठौड़ को तत्कालीन मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान ने सेना मेडल से नवाजा था। हालांकि बीएसएफ द्वारा उनको सैन्य सम्मान के रूप में मिलने वाले लाभ व पेंशन अलाउंस नहीं मिल पा रहे हैं। जिससे वह गुमनाम जीवन यापन कर रहे हैं। गौरतलब है कि सन 1963 में बीएसएफ में भर्ती होकर राठौड़ 1987 में रिटायर्ड हुए थे। लेकिन आज 75 साल की उम्र में भी एक जवान की तरह दिनचर्या में जीवन यापन कर रहे हैं।

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लोंगेवाला एक ऐतिहासिक जीत

भैरोंसिंह बताते हैं लोंगेवाला की लड़ाई जीते हुए आज 48 साल बीत गए हैं। वहां एक ऐतिहासिक जीत मिली थी पर आज की पीढ़ी इस बात से वाकिफ ही नहीं है कि लोंगेवाला है कहां? मैं चाहता हूं कि जिस तरह गुलाम भारत के वीरों की कहानी बच्चों को पता है। उसी तरह आजाद भारत के सैनिकों की दास्तां भी हर किसी को मालूम होनी चाहिए। हर साल दिसंबर माह में जंग के दिनों की यादें ताजा हो जाती हैं। यह दुनिया की पहली ऐसी जंग थी जो सिर्फ 13 दिन तक ही लड़ी गई। 16 दिसंबर 1971 के दिन पाकिस्तान ने अपने सैनिकों के साथ हिंदुस्तान के आगे सरेंडर किया था। इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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शौर्य का राजस्थानी में गुणगान

राजस्थानी कवि व शेरगढ़ के सूरमा पुस्तक के लेखक मदनसिंह राठौड़ सोलंकिया तला ने सेना मेडल विजेता शौर्यवीर राठौड़ की वीरता के लिए पंक्तियां लिखी सिरै परगनौ शेरगढ़, थळ आथूंणी थाट। दीसै सूरा दीपता, मुरधर री इण माट।। सूरा जलमै शेरगढ़, रमता धोरां रेत। सीम रुखाळै सूरमा, हेमाळै सूं हेत।। हाथ पताका हिंद री, ऊंची राख उतंग। भळहळ ऊभौ भैरजी, उर में देश उमंग।। सन इकोत्तर साल में, टणकी तोफां तांण। सरहद लडिय़ौ सूरमौ, भैरू कुळ रौ भांण।। भलां जनमियौ भैरजी, जबरा किया जतन। सुनिल शैट्टी रोल कियौ, बोडर फिल्म वतन।। कवि ने इन पंक्तियों में भैरोंसिंह के पराक्रम का बॉर्डर फिल्म में रोल का गुणगान किया है। सेना मेडल विजेता भैरोसिंह का जिक्र शेरगढ़ के सूरमा पुस्तक में भी किया गया है।

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