कारण कि महज दस फीसदी ट्रेनें की इसमें शामिल की गई है। ऐसे में यह योजना ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। दरअसल, ट्रेनों में अकेले सफर करने वाली महिला और युवतियों को कई बार परेशानियों से गुजरना पड़ता है। जिसे वे कई बार साझा नहीं कर पाती है। इस तरह की परेशानियों के समाधान के लिए रेलवे बोर्ड ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में मेरी सहेली की शुरुआत की थी। जो वर्तमान में भी चल रही है, लेकिन इस योजना का पूरी तरह से महिलाओं का लाभ नहीं मिल पा रही है। कारण कि इस सेवा के तहत उत्तर पश्चिम रेलवे में जयपुर, जोधपुर, अजमेर, बीकानेर, लालगढ़ व हिसार स्टेशन पर महज 1-1 टीम ही तैनात की गई है। जो उनकी मदद और सहायता के लिए तैनात रहती है। चौंकाने वाली बात है कि, सीकर, जैसलमेर, बाड़मेर, उदयपुर, रेवाड़ी समेत कई बड़े रेलवे स्टेशन है। जहां आरपीएफ चौकी भी और यात्रीभार भी अधिक है। उसके बावजूद भी टीम तैनात नहीं की गई है।
आरपीएफ अधिकारियों ने बताया कि अकेले सफर करने वाली युवती और महिलाओं की सूची रेल प्रहरी ऐप के माध्यम से रेलवे आरपीएफ को उपलब्ध करवाता है। उसमें महिला का ट्रेन, कोच, सीट नंबर होता है। जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर पहुंचती है तो, मेरी सहेली टीम यात्री से संपर्क करती है और उसे किसी भी प्रकार की मदद या समस्या के बारे में पूछती है। हालांकि ज्यादातर महिलाएं शिकायत नहीं करती है, कुछ महिलाएं सीट बदलने की मांग करती हैं, तो कई दूसरे यात्री की शिकायत करती है। जिसका समाधान करवा दिया जाता है।
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हेल्पलाइन नंबर पर मांग रही मदद
पड़ताल में सामने आया कि, जो ट्रेनें मेरी सहेली योजना के अंतर्गत शामिल नहीं है। उनमें सफर करने वाली महिलाएं, युवतियां मदद के लिए रेल मदद और अन्य सोशल साइट्स व 139 नंबर पर कॉल करके शिकायत दर्ज करवा रही है।RPF अधिकारियों का तर्क
आरपीएफ अधिकारियों का कहना है कि स्टेशन से गुजरने वाली प्रत्येक ट्रेन पर नजर रखी जाती है। महिलाओं का फीडबैक लेते रहते हैं। प्लेटफार्म पर महिला स्टाफ भी तैनात रहता है। कई ट्रेनों में भी स्टाफ रहता है। यदि किसी महिला को कोई दिक्कत हो तो वे मदद मांग सकती है या रेलमदद, हेल्पलाइन के जरिये भी शिकायत पहुंचाती है। यह भी पढ़ें