पांच बड़े कबीलों की जीत की याद में मानसिंह ने चौमू के राजा मनोहरदास की सलाह पर कचनार वृक्ष निशान के अपने सफेद झंडे को पचरंगे झंडे में बदला। सेना ने काबुलियों, रोशनियों, युसुफजाईयों और तारीकियों के चहार चौबारी घाटी और अली मस्जिद इलाके के कबीलों को परास्त किया। अफगानी तोप निर्माण की तुलगमा तकनीक को मानसिंह आमेर लाया और जयगढ़ मेंं तोप निर्माण का कारखाना कायम किया। उस समय आमेर आए मुस्लिमों के वंशज आज भी जयपुर व ढूढाड़ में बसे हैं।
हुआ यूं कि काबुल का शासक मिर्जा मोहम्मद हकीम मुगलसेना के काबू में नहीे आया और वह पंजाब तक बढऩे लगा तब बादशाह अकबर ने 19 जुलाई 1589 में आमेर नरेश मानसिंह प्रथम की अगुवाई में मुगलों व कछवाहों की सेना को युद्ध के लिए भेजा। मानसिंह की सेना सिंध नदी को पार कर आगे बढ़ी और पन्द्रह हजार मंगोल घुड़सवारों की सेना को परास्त कर दिया। काबुल को फतेह करने के बाद मानसिंह ने राजकुमार जगतसिंह को वहां का शासन संभलाया। युद्ध में लडऩे गए बीरबल को मारने वाले युसुफजाईयों से बदला लिया। सूरजसिंह कछवाहा ने काबुल राज्य के सेनापति मिर्जा शादमान को मार दिया। मानसिंह ने बुन्नर दर्रा व ओहिन्द के पास एक किला बनवा शहर बसाया जो आज पाकिस्तान में मानशेरा जिला हैं। बालाकोट इसी मानशेरा का एक कस्बा है। मानसिंह ने करीब तीन लाख अफगानियों के अलावा दर समंद में जलाल तारीकी के तारीकियों को काबू में किया। ।
अफगानिस्तान विजय से खुश हो अकबर ने मानसिंह आमेर को सबसे बड़े पांच हजारी मनसबदार का ओहदा देकर काबुल का गर्वनर बनाया। यहां बरसों तक मानसिंह की सेना ने शासन किया। बाद में मानसिंह के वंशज आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने शाहजहां के समय में काबुल कंधार का प्रशासन संभाला।
इतिहासकारों का कहना इतिहास के मुताबिक पाकिस्तान में बालाकोट इलाके को जीतकर वहां मानशेरा शहर बसाया। कछवाहों का काबुल कंधार पर शासन रहने से वहां की कला संस्कृति का समावेश आमेर व जयपुर में दिखाई देता है।
सियाशरण लश्करी अध्यक्ष जयपुर फाऊंडेशन
– शाहजहां ने आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम को काबुल का गर्वनर बनाया और वीरता के लिए उन्हें सात हजारी मनसब का सबसे उंचा सम्मान दिया।
देवेन्द्र भगत , बालानंद मठ