चार कारण भारत पर बढ़ी यूरोप की तेल निर्भरता रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान पूरे यूरोप में तेल-गैस का संकट छा गया था। भारत ने इस आपदा को अवसर में बदला और अप्रेल 2023 तक भारत ने तेल निर्यात में सऊदी को पीछे छोड़ दिया। युद्ध से पहले यूरोप अपनी जरूरत के 40 प्रतिशत तेल और गैस का आयात रूस से करता था लेकिन युद्ध के दौरान लगे बैन से यूरोप में हाहाकार मच गया। इधर बैन से हो रहे नुकसान से उबरने के लिए रूस ने भारत को कम रेट पर तेल निर्यात करना शुरू कर दिया। भारत रूस से तेल खरीदता और रिफाइन कर यूरोप को सप्लाई करने लगा। यूरोप की भारत पर तेल निर्भरता बढ़ने लगी। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत के जरिए कई यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था गिरने से बच गई।
भारत के रूस और वेस्ट, दोनों से अच्छे संबंध भारत, उन कुछ देशों में से एक है जिसके रूस और पश्चिम दोनों के साथ ही अच्छे संबंध हैं। एक साल से ज्यादा वक्त से चल रहे युद्ध ने कई पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं और सप्लाई चेन को तोड़ कर रख दिया है। इस दौरान भारत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निकट भविष्य में देशों के बीच मध्यस्थता निभा सकता है। युद्ध को समाप्त करने के लिए बातचीत या कूटनीति को किसी भी संभावना के मामले में रूस और पश्चिमी देशों के बीच भारत का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण रहने वाला है।
सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है भारत सबसे बड़ा कारण भारत की अर्थव्यवस्था है। इंडिया की जीडीपी 2.66 ट्रिलियन डॉलर है जो कि जी-7 से तीन सदस्य देश फ्रांस, इटली और कनाडा से ज्यादा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानि आइएमएफ का कहना है कि भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ती इकॉनोमी है। विश्व बैंक के आंकड़े भी यही कह रहे है कि सात सबसे ज्यादा उभरते मार्केट्स और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में भारत की विकास दर सबसे ज्यादा है।
दरअसल पश्चिमी देशों की आर्थिक विकास की उम्मीदें और संभावनाएं एक स्तर पर आकर स्थिर हो चुकी हैं। आइएमएफ के अनुसार इंडिया निकट भविष्य में इंवेस्टमेंट और बिजनेस में वैश्विक विकास का नेतृत्व करने में सक्षम है। भारत के अन्य देशों के बढ़ते निवेश के पीछे भारतीय बाजार की क्षमता, कम लागत और अच्छी व्यापारिक नीतियों जैसे कई कारण हैं।
इंडो पैसिफिक क्षेत्र में चीन की चुनौती इंडो पैसिफिक रीजन में अनेकों आर्थिक अवसर हैं, जिनके लिए अमरीका, जापान के अलावा अन्य यूरोपीय देश अपनी नीतियां बना रहे हैं। सर्वविदित है कि हिंद प्रशांत महासागर विश्व का जिओपोलिटिकल और इकॉनोमिकल केंद्र बन चुका है। लेकिन यहां इन दोनों से संगठनों से पहले चीन अपने पैर पसार रहा है जो कि पूरे विश्व के खतरे की घंटी है। श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट का अधिग्रहण चीन के इरादों को जगजाहिर करता है। पिछले कुछ समय में विश्व ने देखा है कि भारत आर्मी, बेहतरीन रणनीति और अच्छी ब्यूरोक्रेसी के दम पर चीन को कई मोर्चों पर नियंत्रित करने में सफल रहा है। चीन को रोकने के लिए जी -7 के सदस्य देशों में कई देश भारत से संबंधों को बेहतर कर रहे हैं।
नाटो प्लस में शामिल होने से भारत को फायदे नुकसान दोनों
अमरीका भारत को नाटो प्लस का सदस्य बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। सयुंक्त राष्ट्र ने खुद भारत को नाटो प्लस में शामिल होने का बुलावा दिया है। लेकिन भारत के इस ग्रुप में शामिल होने के अपने फायदे नुकसान हैं। दरअसल नाटो प्लस का हिस्सा बनने पर भारत चीन के मोर्चे पर तो ताकतवर हो जाएगा लेकिन भारत को उन्नत हथियारों आपूर्ति के लिए हमें अमरीका और अन्य देशों पर निर्भर होना पड़ सकता है । इससे भारत – रूस संबंधों पर फर्क पड़ सकता है। भारत – रूस के बीच स्थापित एस-400 की डील भी इस ग्रुप में शामिल होने पर बर्खास्त हो सकती है। दूसरा ये एक सैन्य संधि है और भारत की हमेशा से ही स्वतंत्र विदेश नीति रही है। अगर भारत इस ग्रुप का हिस्सा बनता है तो उसे दूसरे देशों में संकट के समय अपनी सेना मदद के लिए भेजनी होगी जबकि भारत अभी विश्व में महाशक्ति बनकर उभर रहा है।
जी-7 और नाटो प्लस का उद्देश्य क्या है.. जी-7 यानि ग्रुप ऑफ सेवन दुनिया के सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों का संगठन है जिसका उद्देश्य मानवाधिकारों की रक्षा, कानून बनाए रखना और वैश्विक विकास के मुद्दों के समाधानों को चर्चा करना है। इधर नाटो प्लस अमरीका द्वारा संगठित एक ग्रुप है जिसका उद्देश्य वैश्विक रक्षा और शांति को बढ़ावा देना है। ये संगठन चीन जैसे देशों को अन्य छोटे देशों पर हमला करने से रोकने और बड़े देशों से छोटे देशों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
जी – 7 के सदस्य देश
अमरीका
ब्रिटेन
फ्रांस
कनाडा
जापान
जर्मनी
इटली नाटो प्लस के सदस्य देश
दक्षिण कोरिया
जापान
इजरायल
न्यूजीलैंड
ऑस्ट्रेलिया जी -7 फिर से जी -8 होता है या नहीं, भारत नाटो प्लस का 6वां सदस्य बनता है या नहीं, ये तो समय ही बताएगा। लेकिन ये साफ है कि भारत हिंद प्रशांत महासागर में और रूस एवं पश्चिम के बीच सामंजस्य बिठाने के लिए एक बेहद जरूरी कड़ी है।