हम सिनेमा, क्रिकेट और पॉलिटिक्स की गिरफ्त में
अमोल ने कहा, ‘मैं हमेशा कहता हूं कि सिनेमा, क्रिकेट और पॉलिटिक्स, इन तीनों ने हमारी जिंदगी पर काबू कर लिया है। हालांकि, थियेटर की जगह इनमें से कोई नहीं ले सकता। रंगमंच में इतनी ताकत है कि चंद शब्द में हमें वह सोचने पर मजबूर कर देता है, जो हमने मंच पर देखा तक नहीं है। सिनेमा में धन और तकनीक की कमी नहीं है, लेकिन ‘बाहुबली’ और ‘आरआरआर’ जैसी फिल्मों के वैभव को रंगमंच पर महज कुछ शब्दों से महसूस कराया जा सकता है। हमारी आंखें लाइव थियेटर परफॉर्मेंस में जो अनुभव करती हैं, वह सिनेमा में नजर नहीं आ सकता।
थियेटर एक बहुत ही सक्षम और ताकतवर मीडियम है
मैं यह भी मानता हूं कि हम लोग सिनेमा से कम्पीट करने के फेर में रंगमंच की इस ताकत को भूल गए हैं। हम जो कल्पना करते हैं, उन्हें थियेटर के मंच पर ला नहीं पाते, क्योंकि बहुत-सी दुश्वारियां हैं। मैंने अपना सफर एक पेंटर के रूप में शुरू किया। आज मैं एक फुल टाइम पेंटर बनकर बहुत खुश और गर्वित महसूस करता हूं, एक्टिंग कभी-कभार कर लेता हूं। एक पेंटर के तौर पर मैं कैनवास के शून्य को भरता हूं। ऐसे ही एक कलाकार भी मंच पर अपनी एक्टिंग, आवाज और हाव-भाव से मंच पर उस खाली स्पेस को भरने का काम करता है, जो हम सब महसूस करते हैं। एक कलाकार अपने हुनर से लोगों को हंसने, रोने, विद्रोह करने, सोचने, क्रोधित होने और बदलाव लाने की ताकत रखता है। इसे समझने के बाद मेरा थियेटर के प्रति लगाव और बढ़ गया।