इसका खुलासा भीलवाड़ा की आरवीआरएस मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग में पिछले एक साल से चल रहे शोध के दौरान 3 से 8 साल तक के 50 बच्चों की स्टडी में हुआ। शोध में ऐसे बच्चों को शामिल किया जो इस तरह के आदी हो गए। मोबाइल रील्स के कारण बच्चों ने आउटडोर गेम से दूरी तक बना ली है।
एक साल से कर रहे शोध
मनोरोग विभाग की पांच सदस्य टीम की ओर से किए गए शोध में उन बच्चों को शामिल किया जो इस तरह के आदी है। काउंसलिंग के लिए पहुंचने पर इन पर बच्चों पर स्टडी की गई। शोध में सामने आया कि गेम्स और रील का चस्का मां-बाप का लाड-प्यार छीन रहा। हालांकि, बालपन में मोबाइल के बढ़ते दखल की बड़ी वजह अभिभावक माने गए हैं। मनोरोग विभाग में अभिभावकों को काउंसलिंग भी दी गई। लगभग मामलों में देखा कि अभिभावक पहले खुद बच्चों को मोबाइल थमाते हैं।यह आ रहे दुष्प्रभाव
- बच्चों में एकाग्रता की कमी
- नींद में कमी
- स्वभाव में चिड़चिड़ापन
- बात-बात पर गुस्सा व उग्र होना
- खेलकूद से दूरी बनाना
- बातचीत में कमी से सामाजिक कौशल प्रभावित
केस-1
मोतीनगर निवासी मोहम्मद रिजवान काजी की छह वर्षीय बेटी और दो साल के बेटे को खाते समय साथ में मोबाइल चाहिए। मोबाइल नहीं देने पर दोनों खाना नहीं खाते। मां के हाथ से भी खाना गवारा नहीं। मां का मोबाइल खराब होने पर पिता ने कुछ दिन ठीक नहीं कराया। बच्चों की आदत छूट गई।केस-2
नेहरू विहार के जसवंत का 10 साल का बेटा और 5 वर्षीय बेटी मोबाइल में गेम्स और रील्स देखने के इतने आदी हो गए कि बिना मोबाइल लिए खाना नहीं खाते हैं। खाना खिलाते समय मोबाइल दिखाते रहना परिवार की मजबूरी बन गया।अभिभावकों के लिए समाधान की राह
मोबाइल में डिजिटल वेलपिन का विकल्प या ऐप है। इसमें किसी एक ऐप को लॉक या टाइमर लगाया जा सकता है। निश्चित समय पर वह ऐप लॉक हो जाएगा। पढ़ते समय भी ऐप लॉक किए जा सकते हैं। इस इंतजामों से बच्चों की मोबाइल से दूरी बनाई जा सकती है। परिवार के बाकी सदस्यों को भी जिम्मेदारी निभाते हुए मोबाइल दूर रखना होगा। इसके अलावा माता-पिता को बच्चों को आउटडोर खेल, पढ़ाई या कला जैसी गतिविधियों के लिए प्रेरित करना होगा।एक्सपर्ट व्यू…
बच्चे ही नहीं, हर वर्ग के लोग दो घंटे या उससे अधिक रील्स या वीडियो देखने में दे रहे हैं। हर माह ऐसे केस आते हैं। बच्चों की काम करने की दक्षता कम हो रही। वे एक काम में अधिक समय ध्यान नहीं लगा पा रहा। ऐसे में परिवार की भूमिका अहम हो जाती है। ध्यान नहीं देने पर लंबे समय बाद अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर होने की आशंका रहती है।– डॉ. वीरभान चंचलानी, मनोरोग विभागाध्यक्ष, एमजीएच