राजस्थान के पाली मारवार जिले में स्थित है यह जगह। यहां हजारों साल पुरानी गे्रनाइट की बनी चट्टानी संरचनाएं मौजूद हैं जहां तेंदुएं आपको खुले घूमते हुए नजर आ सकते हैं। राजस् थान के पूर्व में स्थित रणथंबौर राष्ट्रीय उद्यान की तरह जवाई एक संरक्षित क्षेत्र नहीं है। इसके बावजूद बिल्ली के परिवार से ताल्लुक रखनो वाले तेंदुओं ने पीढिय़ों से इसे अपना घर बना रखा है। हैरान करने वाली बात यह है कि स्थानीय लोग और तेंदुएं साथ-साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं। यहां पर कभी भी इंसानों द्वारा या फिर तेंदुओं द्वारा इंसानों पर हमला करने की कभी कोई खबर सामने नहीं आई। एक और अच्छी बात यह है कि इस इलाके में रहने वाली रबारी समुदाय के लोगों और तेंदुओं के बीच असामान्य सद्भाव देखने को मिल जाता है। न तेंदुए इन लोगों पर हमला करते हैं और न ही ये लोग तेंदुए पर हमला करते हैं। इसके अलावा आप यहां कैंपिंग के साथ-साथ ट्रैकिंग भी कर सकते हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक माना जाता है। वैसे बारिश के मौसम में भी आप यहां आने का प्लान बना सकते हैं।
‘गोल्डन सिटी’ के नाम से मशहूर जैसलमेर अपने आपमें ही एक ऐतिहासिक शहर है। यूनेस्को ने इसे वैश्विक धरोहर स्थल में शामिल कर रखा है। यह पीले बलुआ पत्थर की दीवारों के अपने विशाल परिसर के लिए जाना जाता है, जिसे 1156 में बनाया गया था और यह भारत का एकमात्र “जीवित” किला है, जिसे करीब 3,000 लोग अभी भी इसे अपना घर कहते हैं। पहले सिल्क रोड का हिस्सा रहा यह क्षेत्र फारसी, मुगल और राजपूत संस्कृतियों के मिश्रण के लिए जाना जाता है। इसके अलगाव के कारण, इसकी कई प्राचीन परंपराएं आज भी फल-फूल रही हैं, विशेषकर लोक संगीत और नृत्य जो इस क्षेत्र के गांवों में अभी भी जीवित हैं। जैसलमेर से करीब एक घंटे की दूरी पर स्थित है सुजान सेराई है जो करीब 40 हेक्टेयर रेगिस्तानी झाडिय़ों से घिरा हुआ इलाका है। यहां आपको हरी-भरी वनस्पतियां, सरसों और अरंडी के तेल के फूलों से घिरे विशाल क्षेत्र देखने को मिल सकते हैं। यह एक शांत जगह है। अगर आप पक्षी देखने के शौकीन हैं तो दुर्लभ भारतीय बस्टर्ड की आवाज ही आपके शांत वातारण में खलल डाल सकती है। यहां आप सूर्यास्त होते हुए भी देख सकते हैं।
राजस्थान में 250 से अधिक किलें हैं, जो क्षेत्र की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत की झलक प्रदान करते हैं, लेकिन जोधपुर से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर स्थित मिहिर गढ़ एक विसंगति है। इसके नाम का अर्थ है “सूरज का किला”। यहां आप कैमल सफारी का आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा कैंपिंग करने के साथ-साथ आप काले हिरण भी देख सकते हैं। इसके अलावा आप प्रकृति-प्रेमी बिश्नोई समाज के लोगों से भी मुलाकात कर सकते हैं। इस समाज के लोग काले हिरण को काफी मानते हैं और इनके संरक्षण के लिए भी ये लोग काफी मेहनत करते हैं। काले हिरण का शिकार करना ये लोग पाप मानते हैं और किसी और को भी इनका शिकार नहीं करने देते हैं। इसके अलावा समाज के लोग 29 नियमों की एक श्रृंखला का पालन करते हैं जो जीवन के सभी रूपों को संरक्षित और संरक्षित करने का वादा करते हैं।
यदि आप राजस्थान के प्रसिद्ध जगह घूम चुके हैं और कुछ नया तलाश रहे हैं तो नारलाई गांव आपके लिए एक दम सही जगह है। यह गांव पाली जिले में स्थित है और यह जोधुपर एवं उदयपुर से दो घंटे की दूरी पर स्थित है। हालांकि, इस गांव में बहुत कम पर्यटक आते हैं, लेकिन जब कोई यहां घूमने आता है तो स्थानीय लोगों के चेहरे खिल उठते हैं। यहां के स्थानीय लोग आपकी मदद करने के लिए भी आतुर रहते हैं। यह क्षेत्र कई गुफाओं, मंदिरों और वन्य जीवन का घर है। दरअसल, इस क्षेत्र में 14वीं सदी के 350 से अधिक मंदिर हैं। नारलाई में जोधपुर के राजघरानों की 17वीं सदी की शिकार जागीर, रावला नारलाई भी है।