एसके अस्पताल का ट्रोमा सेंटर आखिर सात साल बाद खुल ही गया। अस्पताल प्रशासन ने गल चुकी चादरों को कंडम घोषित कर निस्तारण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कलक्टर के निर्देश के बाद काम में तेजी आई है।
ट्रोमा सेंटर में बंद ऑपरेशन थियेटर, आईसीयू व लेबोरेट्री के बंद कमरे खोल दिए गए हैं। नर्सिंग स्टॉफ इन कमरों में लगे आक्सीजन सिस्टम व अन्य उपकरणों की ट्रायल कर व्यवस्थाओं का जायजा ले रहे हैं।
वहीं अस्पताल प्रशासन दिवाली से स्टॉफ लगाने की रूपरेखा तय करने में जुटा है। गौरतलब है कि राजस्थान पत्रिका ने ट्रोमा सेंटर व अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से गली 12 लाख रुपए चादरों के विषय में समाचार प्रकाशित किया था।
किस कारण गली चादर, पता नहीं
मरीजों के बैड पर बिछने वाली चादर गलने के पीछे जिम्मेदार कौन है और इन चादरों की कीमत की वसूली कैसे होगी। इसका अस्पताल प्रशासन पता नहीं लगा पाया है। खास बात ये है कि अस्पताल प्रशासन इस उधेडबुन में है कि चादर किस वार्ड से कब आई थी।
सूत्रोंं के अनुसार चादरों के गलने पर जिम्मेदारों को कई बार सूचित करने के बाद भी उन्होंने जानबूझकर ध्यान नहीं दिया। हालांकि पीएमओ डा. एसके शर्मा ने मामले की जांच करने और दीवाली तक ट्रोमा सेंटर शुरू करवाने का आश्वासन दिया है।
स्टाफ के कारण आएगी परेशानी
वर्ष 2008 में बने ट्रोमा सेंटर में स्टॉफ की कमी को लेकर अलग-अलग तर्क सामने आ रहे हैं। ट्रोमा सेंटर में होने वाली सुविधाओं के मुताबिक प्रबंधन नेे स्टॉफ ही नहीं लगाया गया है। ट्रोमा में आने वाले मरीजों में 70 फीसदी केस न्यूरो सर्जरी के होते हैं।
ट्रोमा सेंटर में न्यूरो सर्जन नहीं होने के कारण मजबूरी में रैफर करने पड़ते हैं। छह बैड के आईसीयू में नर्सिंग स्टॉफ व फीजिशियन नहीं होने से आईसीयू शुरू नहीं हो पाया है। वहीं केवल दो ट्रॉली मैन होने के कारण मरीजों की स्ट्रेचर परिजनों को ले जानी पड़ती है।
प्रबंधन के अनुसार अस्पताल में नर्सिंग स्टॉफ पर्याप्त है और ड्यूटी के सही तरीके से लगाने पर समस्या से निजात मिल जाएगी।
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