इसके बाद पक्ष और विपक्ष की ओर से एक दूसरे पर काफी आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए थे। गौरतलब है कि वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुुमत नहीं मिला था। कांग्रेस ने अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इस दौरान पक्ष व विपक्ष ने सांसदों को खरीदने के आरोप एक दूसरे पर लगाए थे।
बाघों के संरक्षण पर काम
देश में बाघों की संख्या में लगातार कमी को देखते हुए तात्कालिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पहल पर मई 2005 में राजस्थान के रणथम्भौर में एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया गया था। बाघों की संख्या को लेकर हालात यह थे की पूरे देश में बाघों की संख्या हजार के आस-पास रह गई थी। वहीं राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में तो बाघ समाप्त हो गए थे और रणथम्भौर में भी इनकी संख्या कमी आई थी। रणथम्भौर में आयोजित इस सेमिनार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पहल पर ही देश और विदेश के विशेषज्ञों ने भाग लिया था। करीब दो दिन की चर्चा के बाद विशेषज्ञों ने देश में बाघ संरक्षण को लेकर विभिन्न सुझाव दिए थे। सिंह के साथ राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और केंद्र व राज्य के विभिन्न मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी भी इसमें शामिल हुए थे।
एनटीसीए की हुई थी स्थापना
कार्यशाला में आए सुझावों को अमल में लाते हुए मनमोहन सिंह ने प्रोजेक्ट टाइगर का पुनर्गठन करने का निर्णय लिया था। साथ ही राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना भी की थी। इसमें एनटीसीए को अभ्यारण्य क्षेत्र के साथ ही बाघ की संभावित आबादी वाले संरक्षित क्षेत्रों में जांच व कार्रवाई की शक्तियां भी दी गई थी। इसके अलावा अभ्यारण्य क्षेत्र में बसे गांव व अन्य आबादी क्षेत्र के लोगों को अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने के भी सुझाव दिए गए थे। इस पर भी सरकार ने निर्णय कर काम शुरू करने की कवायद शुरू की थी। गौरतलब है कि देश में बाघों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए वर्ष 1973 में प्रोजे?ट टाइगर शुरू किया गया था। इसकी शुरूआत तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य बाघों की संख्या की कमी और प्राकृतिक असंतुलन को दूर करना था। करीब 19 साल की कवायद के बाद वर्तमान में राजस्थान में बाघों की संख्या लगभग 100 के पार पहुंच चुकी है। वहीं देश में बाघों की संख्या अब तीन हजार से अधिक हो चुकी है।