ये शख्स बना चित्तौड़ का सबसे बड़ा शत्रु
महाराजा रतन सिंह के दरबार में कई संगीतकार थे उनमें से राघव चेतन नाम का संगीतकार बहुत प्रसिद्ध था। रतन सिंह उन्हे बहुत मानते थे इसीलिये राज दरबार में राघव चेतन को विशेष स्थान प्राप्त था। लेकिन महाराजा और प्रजा को यह बात मालूम नहीं थी की राघव चेतन संगीत कला के अतिरिक्त जादू-टोना भी जनता था।
महाराजा रतन सिंह के दरबार में कई संगीतकार थे उनमें से राघव चेतन नाम का संगीतकार बहुत प्रसिद्ध था। रतन सिंह उन्हे बहुत मानते थे इसीलिये राज दरबार में राघव चेतन को विशेष स्थान प्राप्त था। लेकिन महाराजा और प्रजा को यह बात मालूम नहीं थी की राघव चेतन संगीत कला के अतिरिक्त जादू-टोना भी जनता था।
ऐसा कहा जाता है की राघव चेतन अपनी इस आसुरी प्रतिभा का उपयोग शत्रु को परास्त करने और अपने कार्य सिद्ध कराने में करता था। एक दिन राघव चेतन को तांत्रिक क्रिया करते रंगे हाथों पकड़ लिया गया और राजदरबार में महाराजा रतन सिंह के समक्ष पेश किया गया। सभी साक्ष्य और फरियादी की दलील सुन कर महाराजा नें चेतन राघव को दोषी करार देते हुए उसका मुंह काला करा कर गधे पर बैठा कर देश निकाला दे दिया।
राघव चेतन ने खेला गंदा खेल
अपमान और राज्य से निर्वासित किये जाने पर राघव चेतन चित्तौड़ महाराजा से बदला लेने पर आमादा हो गया। अब उसके जीवन का एक ही लक्ष्य था चित्तौड़ के महाराजा रतन सिंह का पूर्णत: विनाश। अपने इसी उद्देश को पूरा करने के लिए वह दिल्ली चला गया और दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी से मिलकर चित्तौड़ पर आक्रमण कर अपना प्रतिशोध पूरा करने की ठान ली।
अपमान और राज्य से निर्वासित किये जाने पर राघव चेतन चित्तौड़ महाराजा से बदला लेने पर आमादा हो गया। अब उसके जीवन का एक ही लक्ष्य था चित्तौड़ के महाराजा रतन सिंह का पूर्णत: विनाश। अपने इसी उद्देश को पूरा करने के लिए वह दिल्ली चला गया और दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी से मिलकर चित्तौड़ पर आक्रमण कर अपना प्रतिशोध पूरा करने की ठान ली।
ऐसे जाल में फंसाया अलाउद्दीन खिलजी को
12वीं और 13वीं सदी में दिल्ली की गद्दी पर विराजित अलाउद्दीन खिलजी से मिलना इतना आसान कार्य नहीं था। इसीलिए राघव चेतन दिल्ली के पास स्थित एक जंगल में अपना डेरा डाल कर रहने लगा। वह जानता था कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी शिकार का शौक़ीन है और अक्सर वहां शिकार पर आता है। इस दौरान उससे भेंट करने में आसानी रहेगी।
12वीं और 13वीं सदी में दिल्ली की गद्दी पर विराजित अलाउद्दीन खिलजी से मिलना इतना आसान कार्य नहीं था। इसीलिए राघव चेतन दिल्ली के पास स्थित एक जंगल में अपना डेरा डाल कर रहने लगा। वह जानता था कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी शिकार का शौक़ीन है और अक्सर वहां शिकार पर आता है। इस दौरान उससे भेंट करने में आसानी रहेगी।
कुछ दिन इंतज़ार करने के बाद आखिर उसकी मुलाकात सुल्तान से हो ही गई। उसे जब पता चला कि सुल्तान शिकार पर आ रहा है तो उसने ठीक उसी वक्त अपनी बांसुरी बजाना शुरू कर दिया। जब बांसुरी के सुर अलाउद्दीन खिलजी तक पहुंचे तो उसने राघव चेतन को अपने पास बुलाया और राज दरबार में आ कर अपना हुनर प्रदर्शित करने को कहा। तब तांत्रिक राघव चेतन ने अलाउद्दीन खिलजी से कहा कि.. आप मुझ जैसे साधारण व्यक्ति को अपने राज्य दरबार की शोभा बना कर क्या पाएंगे, अगर हासिल ही करना है तो समपन्न राज्यों की ओर नजऱ दौड़ाइए जहां एक से बढ़ कर एक बेशकीमती नगीने मौजूद हैं जिन्हें हासिल करना आपके लिए मुश्किल नहीं है।
राघव चेतन ने अपना पैंतरा फैकते हुए कहा कि चित्तौड़ की सैन्य शक्ति , धन संपदा और महाराजा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मावती का अद्भुत सौन्दर्य आपको मिल सकता है। रानी के सौन्दर्य का बखान सुनकर क्रूर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण करने का मन बना लिया।
चालाक तांत्रिक राघव चेतन ने चित्तौड़ गढ़ की सुरक्षा और वहां की सम्पदा से जुड़ा एक-एक राज अलाउद्दीन खिलजी के सामने खोल दिया। इस तरह राघव चेतन के इस दुस्साहस और बदले की भावना ने चित्तौड़ और वहां की खूबसूरत महारानी के विरूध कर दिया था जंग का ऐलान। अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद महारानी पद्मावती को अपनी आन बचाने के लिए उठाना पड़ा ‘जौहर‘ का खौफनाक कदम।