ये 15 देश निकले आगे, हमारे यहां अधिनियम पास नहीं हुआ
रिपोर्ट के अनुसार लगभग विश्व की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या निवास करने वाले 15 देशों ने 2017 से अपने यहां सभी तेलों, वसाओं व खानों में ट्रांस फैट की लगभग 2 प्रतिशत मात्रा निश्चित कर दी हैं। जबकि हमारे यहां खाद्य सुरक्षा व मानक अधिकरण (एफएसएसएआई) ने दिसम्बर—2018 में ही सभी तेलों, वसाओं व खाने की वस्तुओं में 2 प्रतिशत ट्रांस फैट की मात्रा सुनिश्चित करने के अधिनियम बनाया। मगर ये अभी तक अधिनियम पारित नहीं हुआ।
इनका कहना हैं….. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अद्यानोम धेब्रेयसस का कहना हैं कि इस कोरोना महामारी में हमें प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सम्पूर्ण प्रयास करने होंगे। जिससे कि वो कोरोना की चपेट में नहीं आए।
दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. ईराम राव ने कहा कि वैज्ञानिक साक्ष्यों के अनुसार हमारे खाने में आने वाले प्रत्येक 2 ग्राम ट्रांस फैट से 23 प्रतिशत तक हृदय रोगों को बढ़ावा मिलता है।
जनस्वास्थ्य पोषण विभाग (आईसीएमआर) हैदराबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रमुख
डॉ. अवुला लक्ष्मण का कहना हैं कि वर्तमान समय में बेहतर परिणामों के लिए समय—समय पर लोगों के खून के नमूनों की जांच कर ट्रांस फैट की मात्रा का पता लगाया जाना चाहिए।
‘कट्स’ के निदेशक जॉर्ज चेरियन ने कहा कि इस कोरोना महामारी में ट्रांस फैट मुक्त भोजन का महत्व बढ़ गया है। जिन लोगों में हृदय व मधुमेह की बीमारी हैं, उनमें कोरोना संक्रमण की ज्यादा आशंका होती हैं।
सभी राज्य सरकारों को भी ट्रांस फैट उन्मूलन के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। उन्हें खाद्य सुरक्षा, जांच के लिए सुविधाएं विकसित करनी होगी। साथ ही खाद्य सुरक्षा की निगरानी भी सख्त करनी होगी। देश को 2022-23 तक ट्रांस फैट मुक्त बनाने के लिए रुके हुए सभी अधिनियमों को तुरंत पास करना होगा।
– मधुसूदन शर्मा, वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी, ‘कटस’ इन्टरनेशनल, जयपुर
ट्रांस फैट असंतृप्त वसा (फैट या चर्बी) का एक रूप है। इसे ट्रांस फैटी एसिड के नाम से भी जाना जाता है। ट्रांस फैट केक, कुकीज, बिस्किट, डोनट्स, फास्ट फूड और क्रीम से बने अन्य रेडिमेड फूड आइटम्स में अधिक होता हैं।