पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट इन दिनों किसान सम्मेलनों के जरिए जनता के बीच में है। पायलट ने जिस तरफ रुख किया है, वह यह संकेत कर रहा है कि अभी नहीं तो कभी नहीं। विधानसभा चुनावों में दस माह का समय बचा है। इसके अलावा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भी इस महीने के अंत तक अपना सफर पूरा कर लेगी। कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन भी अगले माह रायपुर में होना है। इस अधिवेशन के बाद हाल में बने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे अपनी टीम बनाकर काम शुरू कर देंगे। जाहिर है नई टीम के लिए राजस्थान की पहेली सुलझाना अहम होगा। बगावत के तीन साल तक पायलट इसी इंतजार में बैठे रहे कि दिल्ली वाले उनका पक्ष समझेंगे और ‘न्याय’ दिलाएंगे, लेकिन पहले उपचुनाव फिर राज्यसभा चुनाव, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनावऔर अंतत: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में बहुत वक्त गुजरता चला गया।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि सितंबर में सीएम गहलोत के पास जो 102 विधायक थे। उनमें से अब कई छिटक चुके हैं। माना जा रहा है कि यही वजह है कि अब गहलोत को वह बात खुद को कहनी पड़ रही है, जो पहले उनके समर्थकों की ओर से कहला दी जाती थी। सचिन यह बात भली-भांति समझ रहे हैं। यही कारण है कि वे अचानक मुखर हो गए हैं। वे नपे तुले शब्दों में जो बात कह रहे हैं उसे राज्य की जनता बारीकी से देख और सुन रही है। सियासी विशेषज्ञों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान इस समय संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। आलाकमान की कमजोरी का ही नतीजा है कि पार्टी यह विवाद अब तक नहीं सुलझा पाई। और तो और, अनुशासनहीनता का नोटिस देने के बाद पार्टी उन तीनों ही नेताओं के खिलाफ कोई कार्यवाही भी नहीं कर सकी। जाहिर सी बात है इससे सबसे ज्यादा आहत सचिन और उनके समर्थक ही हुए थे। जनता के बीच जाकर सचिन यह मिथक भी तोड़ना चाहते हैं कि वह सिर्फ गुर्जर नेता ही नहीं है। राजपूत और जाट नेताओं को साथ लेकर उन्होंने मारवाड़, शेखावाटी व बीकानेर आदि इलाकों में किसान सभा की। इन सभाओं में सचिन कार्यकर्ताओं को रिझाने के लिए यह कह रहे हैं यह कि गहलोत सरकार में अफसरशाही हावी है। कांग्रेस कार्यकर्ता की कोई सुध लेने वाला नहीं है। राजनीतिक नियुक्तियों और पेपर लीक प्रकरण में अफसरों की भूमिका पर भी उन्होंने सवाल खड़े किए हैं। यह कहना कठिन है कि सचिन का यह पैतरा उन्हें खुद को कोई लाभ पहुंचाएगा या नहीं, लेकिन यह तय है कि इस खुली भिड़ंत से सरकार के 4 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों पर पानी फिर जाएगा। राजनीतिक प्रेक्षकों की नजर अब आलाकमान पर है कि वह इस संकट को सुलझाने के लिए कोई ठोस निर्णय करती है या सत्ता को अपने हाथ से फिसलते चुपचाप देखती रहती है।
गहलोत सरकार की योजनाओं की चर्चा जन-जन तक पायलट भले ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल कर बैठे हों, लेकिन गहलोत लगातार सरकार की योजनाओं की चर्चा और उसका फायदा जन-जन तक पहुंचाने के प्रयास में लगे हैं। चिरंजीवी बीमा योजना, 100 दिनों के रोजगार के लिए शहरी मनरेगा, वृद्धावस्था पेंशन, बिजली सब्सिडी की घोषणा, किसानों के लिए अलग से बजट, सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को लागू किया जा चुका है। ओपीएस को लेकर दावा किया जा रहा है कि इसकी वजह से कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश में जीत मिली।