ये देश में संभवत: एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां बिना सूंड़ वाले गणेश जी की प्रतिमा है। रियासतकालीन यह मंदिर गढ़ की शैली में बना हुआ है। इसलिए इसका नाम गढ़ गणेश मंदिर पड़ा। गणेश जी के आशीर्वाद से ही जयपुर की नींव रखी गई थी।
करीब 290 साल पुराना है मंदिर
यह मंदिर रियासतकालीन है और करीब 290 साल पुराना है। यहां गणेशजी के दो विग्रह हैं। जिनमें पहला विग्रह आंकडे की जड़ का और दूसरा अश्वमेघ यज्ञ की भस्म से बना हुआ है। नाहरगढ़ की पहाड़ी पर महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ करवा कर गणेश जी के बाल्य स्वरूप वाली इस प्रतिमा की विधिवत स्थापना करवाई थी। पहाड़ी पर मंदिर में भगवान गणेजी की प्रतिमा को इस प्रकार प्रतिष्ठापित किया गया है कि परकोटे में स्थित सिटी पैलेस के चन्द्र महल से दूरबीन द्वारा भगवान की प्रतिमा साफ दिखाई देती हैं। कहा जाता है कि रियासतकाल में चंद्र महल से महाराजा दूरबीन से भगवान के दर्शन किया करते थे।
मंदिर में पाषाण के दो मूषक
मंदिर परिसर में पाषाण के बने दो मूषक स्थापित है जिनके कान में भक्त अपनी इच्छाएं बताते हैं और मूषक उनकी इच्छाओं को बाल गणेश तक पहुंचाते है। यहां ऐसी अनोखी गणेश प्रतिमा के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से भक्त आते हैं। भक्तों का विश्वास है कि गढ़ गणेश से मांगी जाने वाली हर मनोकामना पूरी होती है।
पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक पहुंचे के लिए कुल 365 सीढियां है। जो साल के दिन को आधार मानकर बनाई गई थी। मंदिर तक जाने रास्ते में एक शिव मंदिर भी आता है जिसमें पूरा शिव परिवार विराजमान है।
फोटोग्राफी की सख्त मनाही
मंदिर परिसर में फोटोग्राफी की सख्त मनाही है। यहां किसी भी प्रकार से फोटो लेना मना है। मंदिर के पास खड़े होकर देखने से पूरा जयपुर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। यहां से सिटी पैलेस, त्रिपोलिया बाजार, न्यू गेट, रामनिवास बाग का अल्बर्ट हॉल एक सीध में नजर आते हैं।